जब हानिकारक पदार्थ — जैसे रसायन, प्लास्टिक और विषाक्त पदार्थ — नदियों, झीलों, महासागरों और भूजल जैसे जल स्रोतों को दूषित कर देते हैं उसे जल प्रदूषण कहते हैं। यह प्रदूषण पानी को जलीय जीवन, मनुष्यों और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जहरीला बना देता है।
प्रदूषित पानी केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, यह सीधे हमारे स्वास्थ्य को ख़तरे में डालता है, कई बीमारियों का कारण बनता है और प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ देता है। लेकिन यह प्रदूषण आखिर आता कहाँ से है? आईए, जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों पर नज़र डालें।
आज, भारत में जल प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बन चुका है। इसने न केवल नदियों, झीलों और महासागरों जैसे सतही जल को प्रभावित किया है, बल्कि भूजल की गुणवत्ता को भी प्रभावित किया है। भारत में पानी को प्रभावित करने वाले आम प्रदूषक हैं:
१. औद्योगिक कूड़ा:
भारत में कई प्रमुख शहर नदियों और झीलों के किनारे बसे हुए हैं। हालांकि यह सुनने में उपयुक्त लग सकता है, लेकिन इन शहरों से निकलने वाला औद्योगिक कचरा अक्सर सीधे इन जल स्रोतों में फेंक दिया जाता है, जिससे यह अत्यधिक जहरीले हो जाते हैं।
औद्योगिक कूडा में होते हैं:
• भारी धातु (सीसा, पारा, आर्सेनिक, कैडमियम) – जो खनन, चमड़े के कारख़ानों और बैटरी कारखानों से निकलते हैं।
• रासायनिक कूडा – वस्त्र, कागज और फार्मास्युटिकल उद्योगों से निकलने वाले विषैले रसायन।
• तेल और ग्रीज़ – रिफाइनरियों और फैक्ट्रियों से होने वाले रिसाव।
• अस्पताल का कूडा – चिकित्सा अवशिष्ट का अनियंत्रित निपटान।
ये प्रदूषक जलीय जीवन को नष्ट कर देते हैं और हमारे भोजन व पीने के पानी में प्रवेश कर जाते हैं!
२. मलप्रवाह-पद्धति और घरेलू कचरा:
लाखों लोग नदियों, झीलों आदि जैसे स्थिर और बड़े जल स्रोतों पर अपनी दैनिक जरूरतों के लिए निर्भर हैं, जहां मानव और पालतू जानवर निवास करते हैं; वहां नियमितरूप से मलप्रवाह और घरेलू कूडा निर्माण होता है। दुर्भाग्य से, अनुपचारित सीवेज और घरेलू अवशिष्ट आमतौर पर इन जल निकायों में (नदियों, झीलों, आदि) बह जाते हैं।
घरेलू कूडे में शामिल है:
• अनुपचारित मलप्रवाह-पद्धति – मानव और पशुओं का मल-मूत्र, घरेलू कचरा।
• रोगाणु और जीवाणु (बैक्टीरिया) – ई. कोलाई और परजीवियों जैसे हानिकारक सूक्ष्मजीव घातक जलजनित बीमारियों का कारण बनते हैं।
उचित उपचार न किए जाने के कारण यह बड़े जलस्रोत घातक संक्रमणों के केंद्र बन जाते हैं, जो मनुष्यों और जानवरों को गंभीररूप से प्रभावित करते हैं।
३. कृषि अवशिष्ट:
कृषि जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन कृषि में रसायनों का अत्यधिक उपयोग जल प्रदूषण में अप्रत्यक्षरूप से योगदान करता है। आईए देखें कैसे -
• उर्वरक और कीटनाशक का निकास:
रसायनों में मौजूद नाइट्रोजन, फास्फोरस आदि और फसलों पर छिड़के गए कीटनाशक (जैसे डीडीटी, ऑर्गेनोफॉस्फेट्स) जल स्रोतों में मिल जाते हैं, जिससे जहरीली शैवाल (टॉक्सिक अल्गी) बढ़ती है जो जलीय जीवन का दम घोंटती है। यह भूजल को भी दूषित कर सकता है, जिससे जल प्रदूषण होता है।
• पशु अपशिष्ट:
कृषि कार्यों के दौरान पशुधन संचालन से मलमूत्र, रोगाणु (जीवाणु/विषाणु) और अन्य पशुधन से संबंधित कूडा उत्पन्न होता है। इसके अनुचित निपटान के कारण यह आस-पास के जल निकायों में बह जाता है और उन्हें दूषित कर देता है।
• तलछट का निकास:
खेतों से मिट्टी की जुताई और कटाव जैसी गतिविधियाँ जल निकायों को अवरुद्ध करती हैं, जिससे सूरज की रोशनी कम हो जाती है और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है।
• खारे जल का निकास:
सिंचाई के दौरान अतिरिक्त लवण भूजल में मिल जाते हैं, जिससे यह पानी पीने योग्य नहीं रहता।
४. प्लास्टिक अवशेष (हमारे महासागरों और नदियों में धीमी गति से फैलने वाला ज़हर):
प्लास्टिक अवशेष (पैकेजिंग, बोतलें, पॉलिथिन बैग्स, कप, माइक्रोप्लास्टिक, आदि) जल स्रोतों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। क्या आपने कभी नदी में तैरती हुई प्लास्टिक की बोतल देखी है? अब कल्पना करें कि अरबों बोतलें हैं। अब देखते हैं कि यह प्लास्टिक अवशेष आता कहाँ से है?
इससे बदतर यह है कि माइक्रोप्लास्टिक समुद्री भोजन (मछली, आदि) के माध्यम से हमारे खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होते हैं!
५. सांस्कृतिक अपव्यय:
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान उत्पन्न अपशिष्ट जैसे कि प्रसाद, प्रयुक्त फूल, माला आदि को आम तौर पर पानी में विसर्जित कर दिया जाता है, जो प्रदूषण में योगदान कर सकता है; एक विशिष्ट निर्दिष्ट स्थान पर उचित उपचार के बाद इस पानी को विसर्जित करने से इस समस्या का समाधान हो सकता है।
६. ऊष्मीय (थर्मल) अपव्यय:
बिजली संयंत्रों और उद्योगों से निकलने वाला गर्म पानी नदियों और झीलों में छोड़ा जाता है, जिससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर घट जाता है और जलीय जीवों के लिए जीवित रहना कठिन हो जाता है। तापमान में अचानक बदलाव के कारण कई मछली प्रजातियों की मृत्यु हो जाती है।
७. दवा और चिकित्सीय अपव्यय:
क्या आपने कभी एक्सपायरी हो चुकी दवाइयाँ फेंकी हैं? कई लोग ऐसा करते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि दवा अवशिष्ट जल को दूषित कर सकता है।
८. परमाणु कचरा:
परमाणु संयंत्र रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न करते हैं, जिसे बिना उचित उपचार के नदियों में फेंकने पर यह मनुष्यों और जानवरों पर दीर्घकालिक आनुवंशिक और स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव डाल सकता है।
यहां तक कि एक छोटा सा रिसाव भी पानी को सदियों तक विषैला बना सकता है। अपरिवर्तनीय क्षति को रोकने के लिए उचित निपटान अत्यंत आवश्यक है!
भूजल प्रदूषण
बरसात के मौसम में वर्षा का पानी धरती में गहराई तक समाकर दरारों, छिद्रों और झरझरे स्थानों को (मूल रूप से पानी का एक भूमिगत भंडार) भर देता है। इसे भूजल कहा जाता है, जो धरती की सतह के नीचे जमा होता है और पीने के पानी का हमारा मुख्य स्रोत होता है।
कीटनाशक, रासायनिक उर्वरक और पूतिक प्रणाली (सेप्टिक सिस्टम) से निकलने वाला कचरा धीरे-धीरे भूमि में रिसकर भूजल को दूषित कर सकता है, जिससे यह पीने और अन्य मानवीय उपयोगों के लिए अनुपयोगी हो जाता है। एक बार प्रदूषित होने के बाद, भूजल दशकों तक जहरीला बना रह सकता है, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए यह अनुपयोगी हो जाता है।
सतही जल प्रदूषण
• स्वच्छ जल का प्रदूषण:
स्वच्छ जल के स्रोतों (समुद्र के अलावा अन्य स्रोत) जैसे कि नदियाँ, झीलें, आदि से सतही जल, मानव उपभोग के लिए उपयोग किए जाने वाले जल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में स्वच्छ जल का प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। यह आसानी से निम्नलिखित कारणों से दूषित हो सकता है:
१. अनुपचारित मलप्रवाह
२. कृषि से उत्पन्न कूड़ा
३. औद्योगिक कूडा
४. प्लास्टिक और अन्य कचरा, आदि
इस तरह का स्वच्छ जल प्रदूषण जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाता है, सिंचाई को प्रभावित करता है और मनुष्यों में जल जनित बीमारियाँ फैलाता है।
• समुद्री जल प्रदूषण:
समुद्री जल प्रदूषण (समुद्री प्रदूषण) का ८०% हिस्सा भूमि से उत्पन्न होता है। उद्योगों से निकलने वाला कूडा, रसायन, भारी धातु और शहरों एवं खेतों से आने वाला प्लास्टिक, नदियों के माध्यम से बहकर समुद्र में जाता है। तेल रिसाव और जहाजों से होने वाला रिसाव इसे अधिक बदतर बना देते हैं।
समुद्री जल प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, मत्स्य पालन और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकता है। यह अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
जल प्रदूषण सिर्फ एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है - यह एक मानवीय संकट है। यह प्रभावित करता है:
अगले लेख में, हम जल प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य खतरों, अपनी सुरक्षा के उपायों और इस संकट को रोकने के तरीकों पर चर्चा करेंगे।
REFERENCES: