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गट-फ्लोरा के साथ मित्रता के रिश्तेवाले घटक:-

१) आहार: ‌‌ हमारा रोज़मर्रा का आहार ही हमारे गट-फ्लोरा की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

गट-फ्लोरा के साथ सख्यता रखनेवाला आहार:-

१) खिमची: नमक और हल्दी डालकर पानी में उबाली हुई पत्ता गोभी (बंद गोभी)।

२) दही

३) फाईबर (तंतु) की अधिक मात्रावाले फलए।

४) इडली, ढोकला जैसे उफान वाले पदार्थ।

५) पके हुए केले।

६) रोजमर्रा के आहार में सैलड्स और सब्जियां

७) केफिर ग्रेंन्स: यह पदार्थ अगर सही तरीके से बनाया जाए तथा उचित मात्रा में खाया जाए तो हमारे गट-फ्लोरा के लिए ऊर्जा बढ़ाने वाला साबित होता है।

८) डार्क चॉकलेट: चॉकलेट के इस प्रकार में कोको की मात्रा अधिक होती है और इसमें दूध एवं शक्कर नहीं होते। यह चॉकलेट गट फ्लोरा के लिए अच्छे माने जाते हैं। मगर वे कम मात्रा में खाने चाहिएं।

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: व्यायाम: गट फ्लोरा का प्रमाण शरीर में बढ़ाने के लिए नियमित व्यायाम करें।

: प्रो-बायोटिक दवाईयां: आजकल बहुतसारी औषध कंपनियां कैप्सूल्स या पाउडर के स्वरूप में प्रोबायोटिक जीवाणुओं से सज्जित  उत्पाद बनाती हैं, जिनसे हमारे गट-फ्लोरा की क्षतिपूरती की जा सकती है। (प्रोबायोटिक दवाईयों का चयन करते समय हमें हमेशा अपने डॉक्टर की राय लेनी चाहिए क्योंकि, प्रत्येक प्रकार भिन्न है और वह अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है)

: प्रोबायोटिक योगर्ट: इस प्रकार की दही में शक्कर की मात्रा  जांचनी चाहिए क्योंकि, इसमें शक्कर की मात्रा ज्यादा होने की संभावना होती है।

: ऐंटी-बायोटिक दवाईयों का अति तथा अनुचित सेवन टालें। विशेषकर हमें डॉक्टर की सलाह के बिना दवा नहीं लेनी चाहिएं ताकि, गट-फ्लोरा का विनाश न हो।

आईए, अब देखें हमारे शरीर पर बुरे बैक्टेरिया का कैसा प्रभाव पड़ता है:

१. बुरे बैक्टेरिया के कारण हमारे आहार में मौजूद चरबी का रक्तप्रवाह में अधिक शोषण होता है और खून में चरबी की मात्रा बढ़ती है, और मोटापा भी आता है।

२. बुरे बैक्टेरीया हार्मोन्स (अंत:स्राव) के कारण हार्मोंस और एंजाईम्स (किण्वक) अधिक मात्रा में बनाते हैं जिसकी वजह से शरीर में ऐसे रसायनों का असंतुलन तैयार होता है।

३. बुरे बैक्टेरिया हमारी प्रतिबंधक शक्ति के साथ समझौता करते हैं और इसलिए हमें बहुतसारी बड़ी बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

आईए अब हम हमारे शरीर के अच्छे बैक्टेरिया का परिणाम देखते हैं :

१. अच्छे जीवाणु अच्छे रसायन (हार्मोंस एवं एंजाइम्स) बनाते हैं जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखते हैं और हमें काफी तंदुरुस्त रखते हैं।

२. अच्छे बैक्टेरिया हमारी रोग प्रतिबंधक शक्ति बढ़ाते हैं, और हमें किसी भी रोग से लड़ने में सहायता करते हैं।

३. अच्छे जीवाणु ऐसे रसायन उत्पन्न करते हैं जो हमारे विचारों की प्रक्रिया पर प्रभाव डालते हैं। हमारे शरीर के अंत:स्राव के स्तर बहुतसारे बदलाव करके, हमारी सहनशीलता, हमारा व्यक्तित्व और कुल मिलाकर हमारा संपूर्ण जीवन सकारात्मक और अच्छे तरीके का बना देते हैं।

हमारी आंत में अच्छे जीवाणुओं के मृत्यु के तथा बुरे जीवाणुओं की संख्या में बढत होने के कारण:

१. दर्दनिवारक दवाइयों का अति सेवन

२.ऐंटीबायोटिक्स का अति सेवन: कई संक्रामक बीमारियों के उपचार हेतु एंटीबायोटिक दवाइयां इस्तेमाल की जाती हैं। यह दवाइयां सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करनी चाहिएं, और केवल डॉक्टर की सलाह से ही सेवन की जानी चाहिएं। कभी-कभी लोग इन दवाइयों के दुष्प्रभाव जाने बिना ही इनका सेवन करते हैं। ऐंटीबायोटिक्स अच्छे व बुरे जीवाणुओं में फर्क नहीं जानते और इसी लिए वे दोनों प्रकार के जीवाणुओं को मार देते हैं। इसी लिए जैव-विरोधी दवाइयों का अनुचित और अतिरिक्त सेवन से अच्छे बैक्टीरिया मर जाते हैं। और इसी वजह से एंटीबायोटिक दवाइयां सेवन करनेवाले मरीज़ो को उनकी दवाइयों की मात्रा पूर्ण लेने के बाद दस्त होते हैं, यह हम देखते हैं।

३. दीर्घ समय तक गर्भनिरोधक दवाइयों का सेवन।

४. अनाज और लेग्युम्स (फलियां) से उत्पन्न होनेवाले जहरीले द्रव्यों का सेवन करने से।

५. शक्कर की अधिक मात्रावाले पदार्थ:‌ बैक्टेरिया के लिए अतिरिक्त शक्कर अत्यंत हानीकारक है। ज्यादा शक्कर खाने से वे आसानी से  मर जाते हैं।

६. ओमेगा-६ फैटी ऐसिड्स वाले पदार्थों का अधिक सेवन।

७. तनाव।

८. ज्यादा नींद या नींद की कमी।

९. निरंतर आंत की संक्रामक बीमारी।

१०. एरेटेड ड्रिंक्स (वातयुक्त पेय जिसे हम शीतल पेय कहते हैं)।

११. कच्चा दूध पीना: कच्चा दूध गाय / भैंसों के थन के पास मौजूद बैक्टेरिया से दूषित होता है। दूध को उबालने से उसमें मौजूद बुरे बैक्टेरिया का विनाश होता है।

१२. गंदे हाथ: गंदे हाथों के कारण वातावरण से बुरा बैक्टेरिया का  स्थलांतिकरण हमारे खाने में हो जाता है।

१३. खुले वातावरण में रखी हुई मिठाई: अगर ज्यादा समय तक मिठाई बाहर रखी जाए तो उसमें बुरे बैक्टेरिया का प्रादुर्भाव हो जाता है।

१४. अति प्रमाण में उपवास (व्रत) रखने से बुरे बैक्टेरिया की संख्या बढ़ सकती है।

१५. धूम्रपान करना गट बैक्टेरिया के लिए अत्यंत हानिकारक है।

१६. बहुत सारे जानवरों में किए गए अध्ययनानुसार 'विटामिन-डी की कमी' गट-फ्लोरा में अडचन निर्माण करनेवाला एक प्रमुख घटक माना जाता है। और इसी लिए मानवों में भी इसे एक प्रमुख घटक माना जा सकता है। फिरसे, यहां पर यह बताना ज़रूरी है कि, बापूजी की राय अनुसार धूप में चलने से हमारा विटामिन-डी फिरसे संचित तो होगा ही और हमारा गट-फ्लोरा भी फिरसे सही होने में सहायता मिलेगी। ऐंटीबायोटिक का इस्तेमाल केवल डॉक्टरों की राय से ही करें। आजकल अधिकांश डॉक्टर ऐंटीबायोटिक्स के साथ-साथ प्रोबायोटिक्स की भे शिफारिस करते हैं। प्रोबायोटिक्स ऐंटीबायोटिक थेरपी के दुष्प्रभाव के कारण नष्ट होनेवाला गट-फ्लोरा की आपूर्ती करते हैं।

हम अपने आंत में मौजूद अच्छे बैक्टेरिया की संख्या कैसे बढ़ा सकते हैं?

इसका जवाब बहुत आसान है। हमें केवल अपने आहार में कुछ बदलाव करने पड़ेंगे और थोड़ीसी सावधानता बरतनी पड़ेगी।

१) फ्रुक्टोज और ओमेगा-६ जैसे जहरीले खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना है, जो कि अच्छे बैक्टेरिया के लिए हानिकारक माना जाता है।

२) मानसिक तनाव कम करें।

३) आंत के रोगों का उचित उपचार करें।

४) प्रोबायोटिक आहार नियमितरूप से लें - जिसमें बहुतसारे अच्छे बैक्टेरिया होते हैं।

  • दही।
  • योगर्ट।
  • किम-ची (पत्ता गोभी से बनाया हुआ पदार्थ जो १००० गुना ज्यादा अच्छे बैक्टेरिया की आपूर्ति करता है।
  • केफिर।
  • ब्राइन: (नमकीन पानी में रखी हुई ककड़ी)।
  • नमकीन पानी में रखा हुआ आमला।
  • पके हुए केले।

५) आहार में नियमितरूप से किण्वित (फरमेंटेड) पदार्थ खाएं,

  • इडली - इडली का घोल ताजा होना चाहिए। इसे 2-3 दिनों से अधिक समय तक न रखें।
  • डोसा - कम से कम बटर या तेल के इस्तेमाल से बना हो।
  • खमण और ढोकला।
  • अंबिल - अंबिल तो अच्छे जीवाणुओं का खजाना ही है।
  • घर में बनी दही।

६) फाईबर (तंतु) युक्त पदार्थों के सेवन में वृद्धि करें। तंतुयुक्त आहार के दो प्रकार हैं।

  • घुलनशील तंतु (पानी को सोकने वाले)
  • अघुलनशील तंतु (पानी को न सोकने वाले)

अमेरिकन क्लिनिकल न्यूट्रीशन जर्नल अनुसार, अधिक समय तक फाईबरयुक्त आहार लेने से, आंत में बुरे बैक्टेरिया में बदलाव होकर, वे अच्छे बन सकते हैं और वे वजन घटाने का कारण बनते हैं।

अब हम ऐसे खाद्य सामग्री (food stuff) देखेंगे जो हमें भरपूर फाईबर दे सकते हैं, जो हमारी आंत लिए के अच्छे बैक्टेरिया बढ़ने में वरदान साबित होंगे।

  • घुलनशील तंतूयुक्त खाद्यपदार्थ,

१. सेव (इसके बीज नहीं खाने चाहिएं क्योंकि इसमें सायनाईड का अंश होता है)।

२. ओटमील

३. ओट अनाज

४. संतरा

५. नाशपाती

६. स्ट्रॉबेरी

७. ब्लूबेरी

८. नट्स (सख्त कवच वाले फल)

९. बीन्स (द्विदल अनाज)

१०. ताजे मटर

११. ककड़ी (खीरा)

१२. गाजर

  • अघुलनशील युक्त पदार्थ

१. गेहूं

२. सत्तू

३. ज़ूकुनी: एक तरह का कद्दू

४. सेलरी (सैलड पदार्थ)

५. ब्रोकोली (एक तरह की फूल गोभी सदृश्य हरी गोभी)

६. पत्ता गोभी (बंद गोभी)

७. प्याज

८. टमाटर

९. बैंगन

१०. हरे पत्ते वाली सब्जियां

११. फल व भोजन के रूप में उपयोग में लाई जानेवाली वनस्पति (मूली, गाजर, आदि) के छिलके

१२. राजगिरा

१३. गाजर और ककड़ी (खीरा)

संशोधन में यह कहा गया है कि गट बैक्टेरिया में हमारे मन को सुधारने की क्षमता होती है। यह कैसे संभव है? आईए देखें।

हमारी आंत हमारे मस्तिष्क के तल में १०० दशलक्ष मज्जारज्जुओं से जुडी हुई होती है, अर्थात हमारी मज्जासंस्था हमारे आंत से जुड़ी हुई है। आंत में मौजूद जीवाणु अलग-अलग रसायन बनाते हैं जो इन मज्जारज्जुओं पर और परिणामस्वरूप हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव डालते हैं। अच्छे बैक्टेरिया एंजाईम्स व हॉर्मोन्स अच्छे रसायन बनाते हैं, तो बुरे बैक्टेरिया बु्रे रसायन बनाते हैं। इस तरह से वे हमारे विचारों पर अच्छा या बुरा प्रभाव डालते हैं।

कुछ बुरे प्रकार के जीवाणु ऐसे रसायन बनाते हैं कि जिनके कारण चिंता अधिक बढ़ जाती है।

परंतु आंत में बुरा गट-फ्लोरा बदलकर अच्छा गट-फ्लोरा बनने की प्रक्रिया में कितना समय लग सकता है?

इसका उत्तर है, न्यूनतम ३ दिनों से लेकर अधिकतम ७ दिनों का समय लग सकता है। जी हां, यह विचित्र है मगर सत्य है।

एक हफ्ते में हमारी आंत में बुरे जीवाणु अच्छे में बदल सकते हैं।

अगर हमारी आंत में अच्छे जीवाणु होंगे तो, इस भाग में ऊपर उल्लेख की गईं बहुतसी बीमारियां टाली जा सकती हैं अथवा कम से कम उनकी तीव्रता कम की जा सकती है।

अच्छे गट बैक्टेरिया हमारा सबसे बडा शस्त्र हैं और हमारे शरीर की सुरक्षात्मक ढाल होने की वजह से आजकल डॉक्टर इन्हें "भुलाया गया अवयव" कहते हैं और हमारे बापूजी (डॉ.अनिरुद्ध डी. जोशी) ने इसे नाम दिया है;

"लक्ष्मीप्रसाद"

यह एक ऐसा प्रसाद है जो प्रत्येक मानव को माता चंडिका से अर्थात "आरोग्यलक्ष्मी" से प्राप्त हुआ है।