आहार में तंतुमय पदार्थों का शारीरिक स्वास्थ्य पर होनेवाले लाभ :
तंतुमय पदार्थ भरपूर मात्रा में पाए जानेवाला आहार हमें क्यों खाना चाहिए? हमारे स्वास्थ्य पर इससे क्या लाभ होते हैं?
तंतुमय पदार्थों से समृद्ध आहार खाने से होनेवाले लाभ निम्नानुसार हैं :-
- वजन कम होना : पिघलनेवाले तथा न पिघलनेवाले तंतुमय पदार्थ दोनों में कैलरी का प्रमाण कम होता है। पिघलनेवाले (घुलनशील) तंतु पानी सोख लेते हैं और बड़ी आँत में जेल तैयार करते हैं। इससे पाचनक्रिया धीमी हो जाती है। ने पिघलनेवाले तंतु पानी को सोख नहीं पाते। इसके बजाए वे आँत में बडे पैमाने पर घनता निर्माण करते हैं, जिसके कारण कम कैलरीज लेने के बावजूद पेट भर जाने का अहसास होने से जल्द ही तृप्ति होती है। ये दोनों ही रचनातंत्र वजन घटाने में योगदान देते हैं।
- पाचन मार्ग की समस्याओं से सुरक्षा :
(आँत के जीवाणु) ‘गट बॅक्टेरिया’ को जीवित रहने के लिए अन्न की आवश्यकता होती है। आहार में तंतु एवं फलों में फ्रुक्टोज, ‘गट बैक्टेरिया’ के लिए पोषक आहार होता है। ये खाकर ‘गट बॅक्टेरीया’ बड़ी आँत में न पचनेवाले तंतुओं का खमीर बनाते हैं। इससे पोषक द्रव्य एवं गुणकारी रासायनिक पदार्थ बनते हैं, जो पाचनमार्ग को, पाचनसंस्था की कई बीमारियों से सुरक्षा करते हैं; जैसे - इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (आँत में जलन के लक्षण) इन्फ्लैमटोरी बॉवेल डीसीज़ (उद्दीप्य आँत सहलक्षण)।
- मधुमेह में खून में शक्कर के प्रमाण को अधिक बढ़ने से प्रतिबंध :
घुलनशील तंतु पाचनमार्ग से पानी सोख लेते हैं और जेल जैसा पदार्थ बनाते हैं, जो पाचन एवं शोषण प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। ये अन्न में मौजूद शक्कर को भी बद्ध करते हैं, इसकी वजह से आँत से खून में शक्कर का शोषण कम मात्रा में होता है। इसकी वजह से मधुमेह के मरीज़ों में भोजन के पश्चात खून में शक्कर के स्तर में जो अचानक वृद्धि (स्पाइक) होती है, उसको प्रतिबंध होता है।
- खून में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करना :
आहार में पाए जाने वाले तंतु ‘पित्त/अम्ल’ (बाईल) आँत से खून में पुन: सोखने में प्रतिबंध करते हैं। मल द्वारा ‘पित्त/अम्ल’ बाहर फेंका जाता है और इसकी पूर्ति के लिए यकृत को अधिक ‘पित्त/अम्ल’ तैयार करने के लिए कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है। इसके लिए यकृत खून से अधिक मात्रा में कोलेस्ट्रॉल निकाल लेता है, विशेष तौर पर एलडिएल प्रकार का (बैड कोलेस्टेरॉल), जो खून में पाए जानेवाले कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में सहायता करता है।
- कोष्ठबद्धता / कब्ज़ से राहत देता है :-
पिघलनेवाले (घुलनशील) तंतु पानी का शोषण करके बडे पैमाने पर मल तैयार करते हैं। वे मल (विष्ठा) को आँत से सरलतापूर्वक आगे सरकने के लिए मुलायम करते हैं। न घुलनशील तंतु पाचन मार्ग में मल की गतिविधि में वृद्धि करते हैं। यह सारी प्रणाली मलावरोध से मुक्त होने में सहायता करती है।
- दिल की बीमारी से सुरक्षा करती है :-
खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) धमनियों के रिक्त स्थानों में प्लाक (फलक) तैयार करके धमनियों को संकुचित करते हैं। इसके कारण दिल को खून एवं ऑक्सिजन कम मात्रा में मिलता है। आहार में तंतुओं का अधिक सेवन करने से, खून में एलडीएल प्रकार के कोलेस्ट्रॉल का स्तर घट जाता है इससे धमनियों में रिक्त स्थान में प्लाक (फलक) नहीं बनता और इसके परिणामस्वरूप दिल की सुरक्षा होती है।
- लकवा (स्ट्रोक) का धोखा घट जाता है :-
जिस तरह खून में कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) स्तर घटाता है और दिल की रक्षा करता है, उसी तरह उच्च तंतुयुक्त आहार लकवा/पक्षाघात (स्ट्रोक) का धोखा भी घटाता है।
- बवासीर (पाईल्स) से सुरक्षा :-
विष्ठा कड़क हो तो पेट साफ करने के लिए बहुत जोर लगाना पड़ता है। इससे बड़ी आँत के निचले भाग में अर्थात मलाशय की नसों पर अधिक दबाव पड़ता है, जिसकी वजह से बवासीर होता है। पाचन मार्ग में पिघलनेवाले (घुलनशील) एवं न घुलनेवाले (असमाधेय) दोनों प्रकार के तंतु मल की गतिविधियों को सहज करती हैं और कोष्ठबद्धता एवं बवासीर से हमें मुक्ति मिलती है। और इसके परिणाम स्वरूप बवासीर-पीड़ित होने का धोखा घटाते हैं।
- डायवर्टिक्युलायटिस का धोखा घट जाता है। :-
मल विसर्जन के दौरान निरंतर जोर पड़ने से आँत का म्यूकोसा (अंदरुनी दीवार) कमजोर हो जाती है और वहाँ पर उभार (डाइवर्टिक्युलाइटिस) हो जाते हैं। इन कोष्ठों को होनेवाला संक्रमण अथवा जलन को ही डाइवर्टिक्युलाइटिस कहते हैं। कोष्ठबद्धता से मुक्ति एवं विष्ठा का बाहर निकलना सुलभ करके, तंतु ये उभार बनने से (डाइवर्टिक्युलोसिस) एवं परिणामस्वरूप उनकी जलन एवं संक्रमण (डाइवर्टिक्युलाइटिस) होने की संभावना को घटाते हैं।
- त्वचा का स्वास्थ्य बरकरार रखते हैं :-
आहार में मौजूद तंतु पाचन मार्ग में कवक एवं खमीर से बद्ध होते हैं और शरीर से मलद्वारा उन्हें बाहर फेंक देते हैं। इससे त्वचा से उनका उत्सर्जन नहीं होता और इसी कारण त्वचा को फुंसी एवं मुंहासे नहीं होते।
- गॉल स्टोन (पित्ताशय में पथरी) बनने की संभावना को कम करता है :-
गॉल स्टोन (पित्ताशय में पथरी) बनने के लिए कोलेस्ट्रॉल आवश्यक होता है। आहार में मौजूद तंतु खून के कोलेस्ट्रॉल का स्तर घटाते हैं और स्टोन (पित्ताशय में पथरी) के निर्माण का धोखा घटाते हैं।
- मूत्राशय में पत्थर होने की संभावना कम हो जाती है :-
न घुलनेवाले (असमाधेय) तंतु पाचन मार्ग के कैल्शियम से बद्ध हो जाते हैं और खून में उसके शोषण को रोकते हैं। इसी कारण अप्रत्यक्षरूप में मूत्रमार्ग से इनका विसर्जन प्रतिबंधित हो जाता है और मूत्रपिंड में मैल को जमने से रोकता है तथा केल्शियम की पथरी बनने की संभावना को कम करता है।
- हमारे रोग प्रतिकारक प्रणाली को उत्तेजित करते हैं : गट बैक्टेरिया पिघलनेवाले (घुलनशील) तंतुओं का किण्वन करते हैं जिससे कुछ पदार्थ एवं रसायन बनते हैं, जो खुदकी विनाशकारी प्रतिकारक प्रणाली (ऑटोमिम्यून बिमारी) पर नियंत्रण बनाए रखते हैं और प्रतिकारक प्रणाली के कार्य में सुधार होता है।
- कैंसर से सुरक्षा होती है : जैसे;
बड़ी आँत (कोलॉन) का कैंसर :
बड़ी आँत में अच्छे बैक्टेरिया के कारण घन पदार्थों के तंतु पित्तरस में परिवर्तित हो जाते हैं तथा वे एक अत्यन्त महत्वपूर्ण रसायन उत्पन्न करते हैं। उदा. ब्युटरेट, ये हमारी आँत में म्यूकोसा (श्लेश्म झिल्ली) का, आहार में के कार्सिनोजेन्स (कैंसर निर्माण करनेवाले पदार्थ) के दुष्प्रभाव सुरक्षा करते हैं। न घुलनेवाले (असमाधेय) तंतु पाचन मार्ग की गतिविधि बढ़ाते हैं, जो शरीर के कार्सिनोजेन्स, उनका प्रभाव हमारे शरीर पर होने से पहले ही, नष्ट कर देते हैं।
स्तनों का कैंसर :-
आहार में पाए जानेवाले तंतु पाचन मार्ग के अतिरिक्त इस्ट्रोजेन को बद्ध करते हैं। इससे खून में मौजूद इस्ट्रोजेन का स्तर कम हो जाता है। इस्ट्रोजेन की मात्रा खून में अधिक हो तो, वह स्तन के कैंसर के लिए कारण बन सकता है।
महत्वपूर्ण :-
फलों में भले ही फ्रुक्टोज, शक्कर का मुख्य प्रकार हो, फिर भी फ्रुक्टोज तंतुओं से समृद्ध होता है। फलों में जो तंतु होते हैं वे ही फ्रुक्टोज को बद्ध करते हैं, जिससे खून में शक्कर का अवशोषण नहीं हो पाता और मल द्वारा वह शरीर से बाहर फेंका जाता है। इसी लिए फलों का सेवन हितकारी है।