मेटाबॉलिक सिंड्रोम के मरीजों में हार्ट अटैक (दिल का दौरा) और स्ट्रोक (लकवा) का संभावित खतरा होता है। इसे 'सिंड्रोम एक्स' भी कहते हैं। मेटाबोलिक सिंड्रोम में समाविष्ट घटक हैं:
१. खून में शर्करा का उच्च स्तर [डायबिटीज मेलिटस>
२. उच्च रक्तदाब [हायपरटेन्शन>
३. अतिरीक्त वज़न [मोटापा>
४. खून में बढा हुआ कोलेस्ट्रॉल का स्तर [हायपरलिपिडेमिया>
इनमें से, एक से अधिक घटकों की एकसाथ मौजूदगी, भीषण बीमारियों से होनेवाली विकृतियों का खतरा बढाती हैं।
बापूजी ने उनके सेमिनार में कहा था कि, ’मृत्यु के प्रमाणपत्र में कभी भी "मोटापा" शब्द दिखाई नहीं देता, इसके बदले में "दिल का दौरा", "हार्ट फेल्युअर", "लकवा", "मधुमेह", "कैंसर", "डिमेन्शिया (मनोभ्रंश)", या "सिरोसिस ऑफ लिवर" (यकृत का पतन होना) ऐसे शब्द होते हैं। लेकिन हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि 'यह ऐसी बीमारियां हैं जो “मोटापे” के साथ ही संचारण करती हैं।’
इसका मतलब यह है कि, हमारे लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं निर्माण करनेवाली कई बीमारियां केवल मोटापे के अस्तित्व के कारण ही होती हैं।
आईए अब हम संक्षेप में मेटाबोलिक सिंड्रोम के विभिन्न घटक देखें:
मोटापा
हम में से कितने लोग मोटे हैं?
क्या हमारे शरीर की थुलथुल ही हमारे मोटापे की सूचक है?
कुछ दशक पहले लोग इतने मोटे क्यों नहीं थे जितने हम आज हैं?
ऐसे कुछ प्रश्न हैं जिनका हम पिछले कुछ वर्षों से बार-बार सामना कर रहे हैं और हम जल्द ही इन सवालों के जवाब चाहते हैं। यहाँ पर हम 'मोटापे' के विषय में संक्षिप्त परिचय कर लेते हैं और अगले कुछ ही दिनों में इसके बारे में विस्तृत लेख प्रकाशित किया जाएगा।
वर्तमान में भारत "मोटापे" के संक्रमण की चपेट में है। कई प्रकाशनों में यह बताया गया है कि, मोटापे में योगदान के अन्य कारणों के अलावा "जंक फुड" एक प्रमुख कारण है। इसी तरह गतिहीन जीवनशैली और व्यायाम का अभाव भी मोटापे के कारण हैं।
डब्ल्यूएचओ द्वारा मोटापा और स्थूलता पर प्रकाशित तथ्यपत्र निम्नानुसार है:
⦁ सन १९८० से विश्वभर में मोटापे की प्रतिशतता दुगुनी हो गई है। ⦁ सन २०१४ में १८ वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के १.९ बिलियन वयस्कों में वजन प्रमाण से अधिक था। इनमें से ६०० मिलियन वयस्क मोटे थे। ⦁ सन २०१४ में, १८ वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के ३९% वयस्कों में वजन प्रमाण से अधिक था और १३% वयस्क मोटे थे। ⦁ विश्वभर में अधिकांश आबादी उन देशों में है जहाँ वजन की कमी की विकृती की तुलना में अतिरिक्त वजन और मोटापे की वजह से लोगों की मृत्यु होती है। ⦁ सन २०१३ में, ५ वर्ष से कम आयु के ४२ मिलियन बच्चे स्थूल अथवा मोटे थे। ⦁ मोटापा टाला जा सकता है। [https://images.who.int/mediacentre/factsheets/fs311/en/> (WHO-विश्व स्वास्थ्य संगठन)
इससे हमें पता चलता है कि, हमारे लिए मोटापा और स्थूलता की महत्वपूर्ण समस्याओं से कितने धोखे निर्माण होते हैं।
बॉडी मास इंडेक्स (शरीर के वज़न का निर्देशांक)
बॉडी मास इंडेक्स व्यक्ति के शरीर के वजन की स्थिति का बोध करानेवाला एक अच्छा संकेतक है।
बीएमआय कैल्क्युलेशन (गणना):
बीएमआय = वजन (किलो ग्राम) / [ऊंचाई (मीटर)> २
वर्गीकरण:
अंडरवेट (वाजबी से कम वजन वाला) = <१८.५ सामान्य वजन वाला = १८.५ - २४.९ ओवरवेट (स्थूल वजन वाला) = २५ - २९.९ मोटापे वाला = बीएमआय ३० या उससे अधिक
लंबाई और वजन की आदर्श तालिका:
|
पुरुष |
स्त्री |
लंबाई (फुट एवं मीटर में) |
(वजन किलो में) आदर्श तक्ता |
(वजन किलो में) आदर्श तक्ता |
५'.०" (१.५२३ मीटर) |
५१ - ५४.५ |
५०.८ - ५४.५ |
५'. १" (१.५४८ मीटर) |
५२ - ५६ |
५२ - ५५.५ |
५'.२" (१.५७४ मीटर) |
५६ - ६० |
५३ - ५७ |
५'.३" (१.५९९ मीटर) |
५७ - ६२ |
५४.५ - ५८ |
५'.४" (१.६२४ मीटर) |
५९ - ६३.५ |
५६ - ६० |
५'.५" (१.६५० मीटर) |
६१ - ६५.५ |
५७.५ - ६२ |
५'.६" (१.६७५ मीटर) |
६२ - ६६.५ |
५९ - ६३.५ |
५'.७" (१.७०० मीटर) |
६४ - ६८.५ |
६१ - ६५.५ |
५'.८" (१.७२६ मीटर) |
६५.८ - ७०.८ |
६२.२ - ६६.७ |
५'.९" (१.७५१ मीटर) |
६७.५ - ७२.५ |
६४ - ६८.५ |
५'.१०" (१.७७७ मीटर) |
६९.५ - ७४.५ |
६६ - ७०.५ |
५'.११" (१.८०२ मीटर) |
७१ - ७६ |
६७ - ७१.५ |
६'.०" (१.८२७ मीटर) |
७३ - ७८.५ |
६८.५ - ७४ |
६'.१" (१.८५३ मीटर) |
७३.५ - ८१.५ |
७३.५ - ८१ |
६'.२" (१.८७८ मीटर) |
७७.५ - ८४ |
७७.५ - ८३.५ |
६'.३" (१.९०४ मीटर) |
८० - ८६ |
८० - ८५.५ |
डायबिटीज मेलिटस (मधुमेह)
उच्च शर्करा स्तर के लोगों को ’मधुमेह का मरीज़’ कहा जाता है।
खून में ग्लूकोज़ के स्तरों का विवेचन
श्रेणी |
फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज़ लेवल सुबह को खाली पेट (भोजन से पहला का रक्त शर्करा स्तर) |
पोस्ट-प्रानडियल ग्लूकोज़ लेवल (भोजन के २ घंटे बाद) (भोजन के बाद का रक्त शर्करा स्तर) |
आम तौर पर: |
७० - १०० मिलीग्राम / डीएल |
<१४० मिलीग्राम / डीएल |
इम्पेअर्ड ग्लूकोज़ टोलरन्स (ग्लूकोज़ की बिगडी हुई सहनक्षमता) |
१०० - १२६ मिलीग्राम/ डीएल |
१४० - २०० मिलीग्राम / डीएल |
डायबिटीज मेलिटस (मधुमेह) |
> १२६ मिलीग्राम / डीएल |
> २०० मिलीग्राम / डीएल |
डायबिटीज मेलीटस को मुख्यरूप से इस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है: १. टाईप I डायबिटीज मेलिटस २. टाईप II डायबिटीज मेलिटस
टाईप I डायबिटीज मेलीटस
टाईप I डायबिटीज मेलीटस: यह पहले ज्युविनाईल ऑनसेट डायबिटीज (अल्पवयीन बच्चों में शुरु हो चुका डाबिटीज) के नाम से जाना जाता था। इस प्रकार का मधुमेह, शरीर में इंसुलिन बनाने की असमर्थता के कारण होता है। इस स्थिति में शरीर में इंसुलिन का स्तर शून्य होता है।
यह प्रकार अक्सर कम उम्र के लोगों में दिखाई देता है, यही कारण है कि इसे 'बचपन में होनेवाला मधुमेह' भी कहा जाता है।
टाईप II डायबिटीज मेलीटस
टाईप II डायबिटीज मेलीटस: यह पहले 'वयस्क लोगों में पाया जानेवाला मधुमेह' के नाम से जाना जाता था। इस प्रकार में, मधुमेह शरीर की कोशिकाओं में निर्मित इंसुलिन का उपयोग करने की असमर्थता के कारण होता है। इसे 'इंसुलिन का प्रतिरोध' भी कहते हैं। इस स्थिति में शरीर में इंसुलिन का स्तर सामान्य लोगों की तुलना में अधिक होता है, लेकिन शरीर इसका इस्तेमाल नहीं कर पाता।
१. वैश्विक स्तर पर सन २०१० तक, लगभग २८५ मिलियन लोग मधुमेह से पीडित थे और इसमें टाईप II डायबिटीज मेलिटस का प्रमाण ९०% था। भारत में इसके मरीजों की संख्या, विश्व के अन्य देशों के मरीजों की तुलना में अधिक होने की वजह से भारत को ‘मधुमेह की राजधानी’ कहा जाता है। २. सन २०१३ में इंटरनैशनल डायबिटीज फेडरेशन के अंदाज अनुसार ३८७ मिलियन लोग मधुमेह से पीडित थे। ३. सन २०३० तक, केवल भारत में, १०० मिलियन मधुमेह के मरीज पाए जाएंगे। [Http://ccebdm.org/news.php>
हायपरटेन्शन (उच्च रक्तदाब)
’हायपरटेन्शन’ यानी उच्च रक्तदाब। हम हमेशा सिस्टोलिक (संकुचक रक्तदाब) / डायस्टोलिक रक्तदाब (प्रसरणशील रक्तदाब) टेस्ट किया जाता है। >१४०/९० मिमी एचजी के रक्तदाब को उच्च रक्तदाब माना जाता है। (Hg = पारा)
सिस्टोलिक रक्तदाब हृदय की संकुचित स्थिति की धमनियों का रक्तदाब होता है। सिस्टोलिक रक्तदाब की सामान्य कक्षा १००-१४० मिमी एचजी की होती है।
डायस्टोलिक रक्तदाब हृदय के विश्राम की स्थिति की धमनियों का दाब होता है। डायस्टोलिक रक्तदाब की सामान्य कक्षा ६०-९० मिमी एचजी की होती है।
हाइपरलिपीडेमिया
खून में मौजूद लिपिड (चरबी) का स्तर असामान्यरूप से बढ़ना, यह 'हाइपरलिपिडेमिया' की कच्ची परिभाषा है। यह खून में मौजूद चरबी दर्शाता है। इन परतों का शरीर के मोटापे से कोई लेना-देना नहीं है, यानी यह परतें किसी दुबले व्यक्ति में भी असामान्यरूप से बढ़ी हुई हो सकती हैं।
रक्त के लिपिड टेस्ट से हमें अपने खून में अच्छे और बुरे कोलेस्ट्रॉल की जानकारी मिल सकती है।
खराब कोलेस्ट्रॉल:
१. एलडीएल [कम घनत्ववाले लिपोप्रोटीन्स>
२. वीएलडीएल [बहुत कम घनत्ववाले लिपोप्रोटीन्स>
३. ट्रायग्लिसराईड्स
ये सारे खराब कोलेस्ट्रॉल के प्रकार हैं। इनकी सामान्य स्तर से अधिक उपस्थिति हृदय के लिए हानीकारक ही होती है।
एचडीएल कोलेस्ट्रॉल:
यह अच्छे प्रकार का कोलेस्ट्रॉल है और अधिकांश मरीजों में यह निम्न स्तर पर पाया जाता है।
संदर्भ तालिका:
|
सामान्य स्तर |
कुल कोलेस्टेरॉल |
२०० मिलीग्राम / डीएल तक |
एलडीएल कोलेस्टेरॉल |
१०० मिलीग्राम / डीएल तक |
ट्रायग्लिसराईड्स |
१५० मिलीग्राम / डीएल तक |
वीएलडीएल कोलेस्टेरॉल |
२ - ३० मिलीग्राम / डीएल |
एचडीएल कोलेस्टेरॉल |
४० - ६० मिलीग्राम से अधिक/ डीएल |