ट्रान्सफैट्स यानी वास्तव में क्या?
* ट्रान्सफैट्स यानी चरबी का एक ऐसा प्रकार जो प्राकृतिक तौर पर नहीं होता है, परन्तु ‘हायड्रोजेनेशन’ नामक रासायनिक प्रक्रिया द्वारा (‘हायड्रोजन’ नामक इस मूल द्रव्य द्वारा संतृत्प (सैच्युरेट) किए गए फैट्स) कृत्रिम तरीके से तेल से बनाया जाता है।
* सामान्य तापमान में ट्रान्सफैट्स घनस्वरूप (गाढे - जमे हुए) होते हैं।
* ट्रान्सफैट्स का उत्पादन करना आसान एवं सस्ता होता है और ये खाद्यपदार्थों को उत्तम स्वाद भी प्रदान करते हैं।
* पोषण के दृष्टिकोन से देखा जाए तो ट्रान्सफैट्स को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक एवं खराब प्रकार की चरबी माना जाता है।
* आहार में नियमितरूप से पाए जानेवाले ट्रान्सफैट्स का सेवन स्वास्थ्य पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव का मूल कारण बन सकता है।
अब हम देखेंगे कि, इन ट्रान्सफैट्स को ‘खराब चरबी’ क्यों माना जाता है और वे हमारे आरोग्य पर किस प्रकार के परिणाम कर सकते हैं।
ट्रान्सफैट्स से संबंधित आरोग्य समस्या।
ट्रान्सफैट्स हमारी सेहत के लिए हानिकारक क्यों होते हैं?
आहार में पाए जानेवाले नियमित एवं अतिरिक्त ट्रान्सफैट्स का सेवन आरोग्य पर काफी हद तक प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, जैसे कि -
* खून में पाया जानेवाला कोलेस्ट्रॉल : आहार में ट्रान्स-फैट्स का अधिक प्रमाण में सेवन करने से खून में पाए जानेवाले कोलेस्ट्रॉल के स्तर में असंतुलन निर्माण होता है। खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) का प्रमाण बढ़ जाता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) का प्रमाण कम हो जाता है। इसी बजह से दिल का दौरा एवं स्ट्रोक (लकवा) का धोखा बढ़ जाता है।
* दिले के दौरे का धोखा : ट्रान्सफैट्स शरीर में विषैले मिश्रण तैयार करते हैं। ये मिश्रण धमनियों की दीवारों पर जलन उत्पन्न करते हैं और उसे हानि पहुँचाते हैं। इसके कारण धमनियाँ अधिक कठोर बन जाती हैं और उनका लचिलापन कम हो जाता है। खून में खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) का प्रमाण बढ़ जाने से प्लाक (परत) जम जाता है और धमनियों में मौजूद रिक्त स्थानों में ये कीचड स्वरूप में जम जाता है। जब ऐसा कीचड दिल के ऊतकों को खून पहुंचानेवाली धमनियों में जमता है तब दिल का दौरा पडने की संभावना बढ़ जाती है।
* मधुमेह : हमारे शरीर में पाई जानेवाली शर्करा (शक्कर) का प्रभावी इस्तेमाल करने के लिए इंसुलिन हार्मोन प्रमुख भूमिका निभाता है। शरीर में पाई जानेवाली मांसपेशियों एवं अन्य अवयवों को यह शर्करा प्रभावीरूप से इस्तेमाल कर पाने के लिए इंसुलिन अपने शरीर से शर्करा को निकाल देता है। ट्रान्सफैट्स इंसुलिन के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, इसलिए इंसुलिन खून में उपलब्ध शर्करा का प्रभावीरूप से चयापचय नहीं कर पाता। इसी को इंसुलिन का प्रतिरोध कहा जाता है। इसके कारण खून में शर्करा का प्रमाण बढा रहता है। इसलिए मधुमेह (डायबेटीस मेलीटस) का धोखा बढ़ जाता है।
* मोटापा : ट्रान्सफैट्स के अतिरिक्त सेवन के कारण पेट के इर्दगिर्द / कमर के इर्दगिर्द तथा शरीर के अन्य अवयवों पर अधिक मात्रा में चरबी जमा हो जती है, जिसके कारण आंतरिक मोटापा बढ़ता है और इनसे संबंधित बहुतसारी संभाव्य समस्याओं का धोखा बढ़ जाता है।
* दाह : ट्रान्सफैट्स हमारे शरीर में विशिष्ठ रसायनों का स्तर बढ़ाते हैं, जो दाह उत्पन्न करने के लिए अनुकूल होते हैं। इसके कारण सारे शरीर में वेदना एवं निरंतर दर्द होता है। उदा. जोड़ों का दर्द, सूजन, आदि।
* कैंसर : आहार में अधिक प्रमाण में ट्रान्सफैट्स के सेवन के कारण कुछ प्रकार के कैंसर होने की संभावना वढ़ सकती है, उदा. ब्रेस्ट कैंसर, बढ़ी आँत का कैंसर (कोलन कैंसर), आदि।
* गट बैक्टेरिया : आहार में उपलब्ध ट्रान्सफैट्स हमारा गट-फ्लोरा बदल देते हैं। वे आंतों में उपलब्ध उपयुक्त जीवाणुओं की तुलना में हानीकारक जीवाणुओं को बढ़ाने में मदद करते हैं। ये हानिकारक गट-जीवाणु जब उपयुक्त जीवाणुओं की तुलना में बढ़ जाते हैं तब, वजन बढ़ जाना, डायबिटीस मेलीटस होना, आदि का धोखा बढ़ जाता है।
ट्रान्सफैट्स हमारे आरोग्य पर बडा ही प्रतिकूल प्रभाव डालते है! स्वस्थ रहने के लिए, हमें अपने आहार में ट्रान्सफैट्स का सेवन टालना चाहिए। परन्तु ये ट्रान्सफैट्स हमारे आहार में किस चीज़ से प्रवेश करते हैं और उनका स्त्रोत समझ में आए तभी तो हम उसे टाल सकते हैं।
तो चलिए, अब हम देखते हैं हमारे आहार में ट्रान्सफैट्स कैसे प्रवेश करते हैं और कैसे हमारा आरोग्य बिगाडते हैं।
ट्रान्सफैट्स के स्त्रोत :
* वनस्पती घी
* तले हुए पदार्थ, उदा. फ्रेंच फ्राईज, आलू चिप्स, सामोसा आदि।
* केक, कुकीज तथा मफिन्स जैसे बेकरी के पदार्थ।
* डोनट्स
* मार्जरिन (कृत्रिम तरीके से बनाई गई वनस्पती - मक्खन)।
* फास्टफुड
* प्रोसेस्ड मक्खन
* अन्य प्रोसेस्ड किए गए पदार्थ उदा. बर्गर, पिज़्ज़ा, बिस्किट, आदि।
आहार में ट्रान्सफैट्स को कैसे टाला जा सकता है?
* प्रोसेस्ड किए गए पदार्थों का सेवन टालें अथवा अपने आहार में उसका कम से कम इस्तेमाल करें।
* आहार में मार्जरिन अथवा प्रोसेस्ड मक्खन का अधिक इस्तेमाल टा्लें। इसके स्थान पर घरेलू मक्खन का जरूरत अनुसार इस्तेमाल करें।
* प्रतिदिन बिस्किट अथवा कुकीज (मीठे बिस्किट) का अतिसेवन टालें।
* प्रोसेस्ड किए गए अथवा पैक किए गए पदार्थों को खरीदने से पहले लेबल पर छपे ट्रान्सफैट्स के प्रमाण हमेशा जाँचकर खरीदें।