विटामिन-सी अर्थात विशेष तैर पर क्या?
* विटामिन-सी को ऍस्कॉर्बिक ऍसिड भी कहते हैं।
* यह एक महत्वपूर्ण अन्न घटक है। मानवी शरीर स्वयं ही विटामिन-सी की निर्मिती नहीं कर सकता है इसी कारण मानव को इसे आधार के माध्याम से प्राप्त करना पड़ता है। यह पानी में पिथल (विद्रव्य) जाने वाला विटामिन है।
* यह सामान्य तौर पर अधिकतर फलों एवं सब्जियों के माध्यम से सहजता से उपलब्ध होते रहता है।
* सेवन किए गए अन्न में से ७०-९०% विटामिन-सी यह हमारे जठर एवं अतड़ियों के माध्यम से शरीर में सोख (ग्रहण कर) किया जाता है।
* सामान्य तौर पर शरीर में पाये जाने वाले विटामिन-सी का प्रमाण ३०० मीग्रॅ.- २ ग्राम के दरमियान होता है।
* कुछ महत्वपूर्ण पेशीयाँ एवं इंद्रियाँ जैसे सफेद रक्त पेशीयाँ, मस्तिष्क, पिट्युटरी ग्रंथी (मस्तिष्क के पिछले पृष्ठभाग के मध्य होने वाली ग्रंथी), ऍड्रिनल (अधिवृक्क) ग्रंथी एवं आँखें इनके बीच सामान्य तौर पर अधिक मात्रा में विटामिन-सी को इकठ्ठा किया जाता है।
* तार, लालरक्त पेशीयाँ एवं प्लास्मा इनमें विटिमिन-सी कम मात्रा में दिखाई देती है।
विटामिन-सी का अपने शरीर में होने वाला कार्य एवं उसकी आवश्यकता-
विटामिन-सी शरीरांतर्गत चलनेवाले काफी कुछ क्रियाओं में सहभागी होता है और इसके लिए यह आवश्यक भी होता है जैसे:-
* कोलाजेन की निर्मिती हेतु विटामिन-सी की आवश्यकता होती है। कोलाजेन (प्रोटीन) यह एक (सांधणारा) साध्य/सहायक पदार्थ है जो शरीर में पायी जाने वाली विविध पेशीयों, उती आदि में अखंडता बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है। इससे योग्य प्रकार से जखम आदि भर जाने के लिए विटामिन-सी की आवश्यकता शरीर को पड़ती है।
* विटामिन-सी न्यूरोट्रान्समिटर्स के (मज्जातंतुओं की पेशीयों से संदेश संवहन करने वाले रसायन) जैवीक संस्लेषण में महत्वपूर्ण रुप में सहभागी होता है।
* विटामिन-सी यह एक महत्वपूर्ण अँटिऑक्सिडेन्ट (प्राणवायु के साथ संयोग न होने देने वाला पदार्थ) है, जिसके कारण :-
१. वे प्रतिरोथी ऑक्सिजन प्रजाति / मुक्त अभारीत रेणू (शरीर तनाव का सामना करते समय तैयार होने वाले हानिकारक रसायन) आदि का शरीर की पेशीयों एवं अतींयों पर होने वाले हानिकारक प्रभावों पर विरोध करते हैं।
२. कुछ प्रकार के कर्करोग पर प्रतिबंध अथवा विरोध करता है।
३. हृदय के विकारों को प्रलिंबित करता है अथवा विरोध करता है।
४. ऑक्सिडेटिव तनाव के बुरे परिणामों से आँख एवं त्वचा का संरक्षण करता है।
५. सातत्य के साथ होने वाले संसर्गजन्य रोगों से संरक्षण करता है।
* अन्य अँटीऑक्सिडेन्ट (प्राणवायू के साथ संयोग न होने देने वाला पदार्थ) के निर्मिती हेतु उदा. (विटामिन-इ) सहायता करता है।
* विटामिन-सी अपने रोगप्रतिकारक शक्ति की क्षमता सुधारता है, जिससे रोगप्रतिकारक शक्ति को कमी लगाने के कारण अथवा आक्रमकता के कारण होने वाली बीमारियों को प्रतिबंध करने में सहायक होता है। (इससे सहायता मिलती है।)
* विटामिन-सी वनस्पतिजन्य स्त्रोतों से मिलने वाले लोह का (हीम रहित लोह) शरीर में योग्य प्रमाण में ग्रहण करने में मदद करता है जिस से शरीर में लोह की कमी निर्माण होने से संरक्षण मिलता है। (सुरक्षा मिलती है।)
सामान्य तौर पर ऐसे ही किसी व्यक्ति के लिए कितनी मात्रा में विटामिन-सी का सेवन करना आवश्यक होता है?
शरीर के जरूरत ने अनुसार लगने वाली विटामिन-सी की आवश्यकता व्यक्तिगत तौर पर भिन्न-भिन्न होती है, वह सामान्य तौर पर वक्ति के उम्र, स्री/पुरुष, गर्भधारणा एवं स्तनपान आदि बातों पर भी निर्भर करती है।
संदर्भ: https://ods.od.nih.gov/factsheets/VitaminC-HealthProfessional/
विटामिन-सी के आहार में पाये जाने वाले प्रमुख स्त्रोत कौन से हैं?
विटामिन-सी यह नैसर्गिक तौर पर प्राप्त होने वाले विविध फलों एवं सब्जीयों में उपलब्ध होता है।सब्जी एवं फलों आदि का नियमित आहार में सेवन करने से हम आवश्यकतानुसार विटामिन-सी सहज रुप में प्राप्त कर सकते हैं। विटामिन-सी के आहार में पाये जाने वाले स्त्रोत इस प्रकार है:-
* फल -
१. नारंगी
२. मोसंबी
३. पपिता
४. अमरुद
५. अननस
६. आम
७. स्ट्रॉबेरी
८. रासबेरी
९. आवला
१०. पपनस
११. किवी
* सब्जी/तरकारी -
१. पालक
२. टमाटर
३. बटाटा
४. शक्करकंद
५. पत्तगोभी
६. ब्रोकोली
७. निंबू
८. मुलई
९. भिंडी
अन्न में पाये जाने वाले विटामिन-सी के स्त्रोतों के अतिरिक्त ये पूरक (न्युट्रीशनलसप्लिमेंट्स) पदार्थों के स्वरुप भी उपलब्ध रहते हैं। परन्तु हेलथोनीक्स नामक वेबसाईट के अनुसार इस प्रकार के पूरक पदार्थ डॉक्टरों के योग्य सलाह नुसार लेना ही लाभप्रद साबित होगा।