विश्व में, निष्क्रियता स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक घातक रोग है। निष्क्रिय जीवनशैली की वजह से स्वास्थ्य के लिए कई घातक रोग और विकार, जैसे कि मोटापा, उच्चरक्तदाब (हायपरटेन्शन), मधुमेह, दिल की बीमारी, तनाव, नैराश्य, आदि संभावित होते हैं। यह सूची अधिक विस्तृत भी हो सकती है। सक्रिय जीवनशैली का पालन करते हुए हररोज शारीरिक हलचल की आदत डालने से, जैसे कि, कसरत करना, जॉगिंग करना (कसरत के तौर पर नियमितरूप से धीरे-धीरे नियत दूरी तक दौडना), पैदल चलने की कसरत करना, दौड़ना; ऐसे कई स्वास्थ्य संबंधी खतरों से बचा जा सकता है। किसी भी तरह की शारीरिक हलचल अपने शरीर के लिए फायदेमंद होती है। परंतु 'चलना' सबसे अधिक उपयुक्त है, क्योंकि:
⦁ यह करना आसान है, विशेष प्रशिक्षण या मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
⦁ यह कम प्रभाव वाला शारीरिक व्यायाम होने के कारण, जोड़ों और अस्थिबंधों को ईज़ा होने की संभावना कम होती है।
⦁ यह समय, स्थान या व्यक्ति पर निर्भर नहीं होता।
⦁ इसके लिए विशेष कपड़ों या साधनसामग्री की जरुरत नहीं होती और इसके लिए कोई खर्च नहीं करना पडता तथा यह आर्थिक दृष्टिकोण से सुविधाजनक होता है।
⦁ इसके लिए आयु की कोई सीमा नहीं है।
⦁ यह निःशुल्क है।
⦁ चलने की वजह से, हमारे शरीर की अधिकतम मांसपेशियाँ कार्यरत होती हैं।
मधुमेह, उच्चरक्तदाब, उदासीनता, कब्ज, थकान, जोड़ों का दर्द, आदि जैसी पुरानी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए, नियमितरूप से ’चलना’ अत्यंत गुणकारी साबित हो सकता है।
आइए अब नियमितरूप से चलने से स्वास्थ्य पर कौनसे और कैसे लाभ होते हैं इस पर एक-एक करके नज़र डालें:
१. अतिरिक्त वजन घटाना और शरीर की अतिरिक्त चरबी कम करना:
अन्य कई कसरतों की तरह, चलने से हृदय की श्वास प्रश्वास संबंधी प्रक्रिया (cardio-respiratory endurance) की क्षमता में सुधार होता है। इसकी वजह से इंसुलिन का प्रतिरोध कम होता है और विशिष्ट हार्मोन्स का स्राव बढ़ता है, जिसकी वजह से हमारे शरीर में जमी हुई अतिरिक्त चरबी घटने लगती है। इस हार्मोन स्राव की वजह से, प्रोटीन्स के निर्माण को आवेग मिलता है, जिससे मांसपेशियों की वृद्धि होती है (मांसपेशियों के ऊतकों में वृद्धि होती है) और मांसपेशियों की ताकत बढाने में उपयुक्त साबित होती है। इसकी वजह से शरीर का वजन और कमर का घेरा घटने में मदद होती है।
२. मधुमेह से बचाव होता है और खून में बढी हुई शक्कर के स्तर पर नियंत्रण रखने में सहायता करता है:
हररोज़ चलने जैसी नियमित शारीरिक हलचल से वजन और शरीर से अतिरिक्त चरबी कम होती है। इसकी वजह से अपने शरीर में इंसुलिन का प्रतिरोध कम होता है और इंसुलिन की संवेदनशीलता में सुधार होता है। इसके अलावा, चलते समय मांसपेशियाँ प्रभावी ढंग से कार्य करती हैं और उनमें, ऊर्जा स्रोत के रूप में, ग्लूकोज की आवश्यकता बढ़ती है। मांसपेशियों और शरीर के विभिन्न ऊतकों और कोशिकाओं में रक्त में मौजूद ग्लूकोज का प्रभावी उपयोग होता है, जिससे इन्सुलिन की संवेदनशीलता सुधरती है। इसकी वजह से खून में मौजूद उच्च शक्कर के स्तर को कम होने में या नियंत्रित रखने में मदद होता है और डायबेटिस मेलीटस (मधुमेह) होने के जोखिम से बचाव होता है।
३. खून के परिसंचरण में सुधार होता है और अपने हृदय का स्वास्थ्य बना रहता है:
नियमितरूप से मध्यम गति से चलने का व्यायाम करने से अपने शरीर की अधिकतम मांसपेशियों का व्यायाम होता है। व्यायाम करनेवाली मांसपेशियों को उचित पोषण के लिए अधिक खून एवं ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इस मांग को पूरा करने के लिए, हृदय को, अथवा व्यायाम करनेवाली मांसपेशियों को अधिक खून की आपूर्ति करनी पडती है। चलने के दौरान, हमारे शरीर में कुछ रसायनों का स्राव होता है, जो धमनियों के संकुचन और प्रसरण के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसकी वजह से हमारे शरीर के साथ-साथ हृदय की मांसपेशियों का रक्तप्रवाह (रक्तसंचार) सहज होने में मदद होती है, जिससे हमारा हृदय स्वस्थ रहता है।
४. उच्चरक्तदाब (हायपरटेन्शन) को प्रतिबंध होता है:
जब धमनियों में रक्त बहता है तब उनकी दीवारों पर जो दबाव पडता है, उसीको रक्तदाब कहा जाता है। उच्चरक्तदाब के कारणों में से एक घटक है, रक्तवाहिनीयों में कठोरता या संकुचन से रक्तप्रवाह में निर्माण होनेवाली रुकावट। शरीर में प्रवाहित हुए जिन रसायनों की वजह से धमनियों में कठोरता या संकुचन निर्माण होता है, वे रसायन ही शरीर में उम्र के साथ होनेवाले परिवर्तन, इंसुलिन का प्रतिरोध, ऑक्सीडेटिव तनाव, दाह और सूजन जैसी बातों के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। सायकोलॉजिकल (मनोवैज्ञानिक) तनाव भी रक्तदाब बढाने के लिए एक महत्वपूर्ण घटक हो सकता है। नियमितरूप से चलना एक अच्छा व्यायाम है, जो धमनियों को संकुचित एवं प्रसरित करनेवाले रसायनों के स्राव में सुधार कर सकता है, तथा दाह एवं सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव और इंसुलिन का प्रतिरोध घट जाता है और इस प्रकार से धमनियों की कठोरता और संकुचितता के लिए जिम्मेदार रसायनों का स्तर प्रभावीरूप से घटा सकता है। चलने की वजह से मानसिक तनाव भी कम हो जाता है। इसी लिए, यह रक्तदाब की तंदुरस्ती बनाए रखने में और हायपरटेन्शन की रोकथाम में मदद करता है।
५. खून में चरबी (कोलेस्ट्रॉल) के स्तर में सुधार होता है और हृदय रोग से जुडी बीमारियों का जोखिम कम करता है:
खून में बढ़े हुए एलडीएल-कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स (खराब कोलेस्ट्रॉल) के कारण स्तर, ऐथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में प्लाक बनता है) होने का जोखिम बढ़ता है, जिससे मायोकार्डियल इन्फार्क्शन (दिल का दौरा) और स्ट्रोक (लकवा) का खतरा बढ़ जाता है। जबकि एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) के पर्याप्त अस्तित्व की वजह से कार्डियोवैस्क्युलर (हृदय एवं धमनियों से संबंधित) बीमारियों के विरोध में रक्षात्मक प्रभाव पडता है। हाय-डेंसिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल [उच्च घनत्ववाले लिपोप्रोटीनयुक्त चरबी - कोलेस्ट्रॉल] (एचडीएल) हृदय से संबंधित घटनाओं में एक मजबूत, सुसंगत घटक है, जिसकी पुष्टि की गई है। नियमित शारीरिक हलचल, जैसे चलने की वजह से, न केवल खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल और ट्राइग्लिसराइड्स) के स्तर घटाने में मदद करता है, बल्कि एचडीएल कोलेस्ट्रॉल (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) का स्तर भी बढता है और इस तरह मायोकार्डियल इन्फर्मेशन (दिल का दौरा) या स्ट्रोक (लकवा) जैसी दिल की बीमारियों से जुडी बीमारियों को भी दूर करता है।
६. फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है और अस्थमा और श्वसन से जुडी बीमारियों में सुधार होता है:
नियमित तेज चलना (प्रतिदिन लगभग ३० मिनट) ऐरोबिक व्यायाम है। यह व्यायाम हमारे फेफड़ों को मजबूत करता है और फेफड़ों की क्षमता बढ़ा सकता है, जिससे हमारी श्वसनक्षमता और श्वसन प्रक्रिया में सुधार हो सकता है। इससे हमारे फेफड़ों के समग्र कार्य बेहतर होने में मदद मिलती है तथा अस्थमा और श्वसन से जुडे रोगों में भी सुधार होने में सहायता मिलती है। तेज गति से ३० मिनट तक चलने से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। यह भी फेफडों को मजबूत करता है। फेफड़ों की इस बढ़ी हुई क्षमता के कारण हम अधिक आसानी से सांस ले सकते हैं और हमारे फेफड़े अधिक लंबे समय तक स्वस्थ रह सकते हैं।
७. हमारी रोगप्रतिबंधक शक्ति बढ़ाकर उसकी कार्यप्रणाली मजबूत करता है:
हररोज ३० से ४५ मिनट तक मध्यम गति से चलना रोगप्रतिबंधक शक्ति को मजबूत करने के लिए फायदेमंद साबित होता है। कैसे? आईए देखें :-
१. नियमितरूप से चलने से रोगप्रतिबंधक कोशिकाओं (श्वेत रक्त कोशिकाओं) की संख्या चलने के बाद कई घंटों तक इसका स्तर बढा हुआ रख सकते हैं, जिसकी वजह से विभिन्न संक्रमणों से हमारी सुरक्षा करने में प्रदीर्घकाल संकलित प्रभाव पड सकता है।
२. ’तनाव’ हमें विभिन्न बीमारियों की चपेट में डाल सकता है। नियमित चलने से तनाव से जुडे हार्मोन्स के स्राव में कमी आती है और उनके सक्रिय चयापचय का कार्य बढता है। इससे तनाव घटता है और बीमारी से बचाव हो सकता है।
३. शारीरिक हलचल, जैसे कि मध्यम गति से चलना - इसके दौरान और ठीक बाद में शरीर के तापमान में थोड़ी वृद्धि हो सकती है, जो बैक्टीरिया को बढ़ने से रोक सकता है। यह तापमान वृद्धि हमारे शरीर को संक्रमण से बेहतर तरीके से लड़ने में मदद कर सकती है।
८. जोड़ों का दर्द और गठिया के खतरों को कम करता है:
मोटापे के कारण शरीर का अतिरिक्त वजन जोड़ों के दर्द और गठिया (जैसे कि घुटने) के लिए खतरे का एक ज्ञात कारण है। शरीर का अतिरिक्त वजन, अपनेआप ही शरीर के वजन को धारण करनेवाले जोड़ों पर अतिरिक्त भार डालने से संबंधित है, जो उपास्थि स्निग्धक को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे आगे चलकर गठिया की संभावना हो सकती है। इसके अलावा, किसी मोटे व्यक्ति के शरीर से अतिरिक्त चरबी से स्रावित होनेवाले कुछ हार्मोन्स जोड़ों में दाह और सूजन पैदा करके गठियाप्रवण बनाते हैं। नियमित शारीरिक हलचल से, जैसे चलने से शरीर से अतिरिक्त चरबी और शरीर का वजन घट जाता है, जिससे सांधों पर से तनाव कम हो जाता है और गठिया होने का जोखिम कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा, गठिया से पीडित सांधों की वेदना एवं बेचैनी दूर हो जाती है।
९. हमारी टांगों को मजबूत करता है और शरीर के संतुलन एवं समन्वय में सुधार लाता है:
आम तौर पर, उम्र बढने से, संतुलन का अहसास कम हो जाता है और इस कम हुए संतुलन की वजह से गिरने का खतरा निर्माण हो जाता है, जिससे अस्थिभंग, सिर और शरीर को चोट लगना ऐसी बातों का जोखिम बढ जाता है (उदा. कमर की हड्डी टूटने से स्वास्थ्यविषयक भीषण स्वरूप की गुत्थी निर्माण हो सकती है और स्वावलंबन धोखे में पड सकता है)। चलने जैसी सरल और सुरक्षित शारीरिक क्रिया, मांसपेशियों को मजबूत करके शरीर की, विशेषकर, टांगों की मासपेशियां और हड्डियों का स्वस्थ बढाती है। यह विशेषकर वयोवृद्धों में संतुलन बनाए रखने में और समन्वय में सुधार लाने में मदद करता है। इसकी वजह से गिरने और चोट लगने का धोखा कम हो जाता है।
१०. हमारी हड्डियों को मजबूत करता है और हड्डी टूटने के जोखिम को कम करता है:
बढ़ती उम्र के चलते हड्डियों की घटती ताकत और घनता को दीर्घित करने के लिए चलने जैसी नियमित शारीरिक क्रिया एक कारण बनती है और इस तरह से, प्रदीर्घ समय के लिए हड्डियों की मजबूती को बरकरार रखने में मदद करती है (हमारी हड्डियों को स्वस्थ रखती है)। यह हमारी मांसपेशियों को भी, विशेषरूप से टांगों की मांसपेशियों को भी मजबूत करती है, जिससे टांगों की ताकत बढती है और शरीर का संतुलन भी बेहतर होता है। इससे गिरने और हड्डी टूटना और उससे होनेवाली पीडा का जोखिम कम हो जाता है।
११. विटामिन-डी का स्तर बढता है:
सुबह को नियमितरूप से चलने से अपनी त्वचा धूप के अधिक संपर्क में आती है जिससे शरीर में विटामिन-डी का स्तर और संचय बढने में सहायता मिलती है।
१२. तनाव कम करता है:
रोजमर्रा के जीवन की परिस्थितियों से जूझना कई बार तनावपूर्ण हो सकता है। हमारा शरीर कुछ रसायनों (जैसे ऐड्रेनालाईन, नॉरऐड्रेनालाईन और कोर्टिसोल) का हमारे खून में स्रवण करके इन परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देता है। यह हमारी प्राकृतिक "लड़ो या भागो" की प्रतिक्रिया का एक प्रमाण है। मगर जब ये रसायन हमारे शरीर में बनकर जमा होते जाते हैं तब उच्च रक्तदाब, अम्लपित्त में बढोतरी, आदि दीर्घकालीन स्वास्थ्य समस्याओं के चपेट में पड सकते हैं। रोज़ाना चलने के रूप में नियमित व्यायाम करने से इन तनाव पैदा करनेवाले रसायनों का प्रभावीरूप से चयापचय करके तनाव कम किया जा सकता है। चलने की वजह से एंडोर्फिन्स जैसे विशिष्ट पदार्थों का स्राव होता है, जो दर्द को कम करते हैं और कुल मिलाकर हम तंदुरुदुस्ती महसूस करते हैं।
१३. मानसिक दृष्टिकोण में सुधार आता है:
हररोज़ चलने के स्वरूप में नियमित व्यायाम किए जाने से मस्तिष्क के विशिष्ट हिस्सों में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो मनोदशा और प्रेरणादायक बर्ताव को नियंत्रित करता है (उदा. लिम्बिक सिस्टम [मस्तिष्क और तंत्रिका तंतु की जटील व्यवस्था], अमीगडला [प्रत्येक सेरिब्रल गोलार्ध में ग्रे पदार्थ का, लगभग बादाम के आकार का अवयव, जो भावनाओं की अनुभूति कराता है], हिप्पोकैम्पस [भावनाओं को नियंत्रीत करनेवाला मस्तिष्क में एक अवयव], एचपीए-अक्ष - [एचपीए ऐक्सिस हमारे शरीर के उपप्रणाली का संक्षेप है, जिसे हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल ऐक्सिस के नाम से जाना जाता है])। इन क्षेत्रों में रक्त प्रवाह में वृद्धि होने से मनोदशा और मानसिक दृष्टिकोण के सुधार के सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। सतर्कता बढती है और तनाव और थकावट कम करता है।
१४. उदासीनता से मुकाबला करने में सहायक होता है:
नियमित शारीरिक क्रियाओं के एक जरुरी भाग के रूप में चलने से सेरोटोनिन और एंडोर्फिन जैसे कुछ विशिष्ट रसायनों (हार्मोन्स) का हमारे मस्तिष्क में स्राव होता है। ये रसायन कुल मिलाकर आरोग्यदाई भावनाओं का प्रभाव उत्पन्न करता है जो उदासीनता से निपटने में सहायक होता है।
१५. स्मरणशक्ति में सुधार होता है और डिमेंशिया और अल्जायमर्स डिसीज़ (विस्मरण) के धोखे को कम करता है:
डिमेंशिया और अल्जाइमर रोग (विस्मरण - मस्तिष्क में बिगाड के कारण विशेषरूप से बुजुर्गों में होनेवाली व्याधि, जिसमें स्मरणशक्ति, बोलना (वाणी), हरकत, आदि, क्रियाएं धीरे-धीरे बंद होने लगती हैं) यह मुख्यरूप से हिप्पोकैम्पस के भाग में मस्थिष्क कोशिकाओं की अपरिवर्तनीय मृत्यु से संबंधित है, जिसमें स्मरणशक्ति, सीखना/अध्ययन करना और ज्ञान से आकलन करने जैसे कौशल्य शामिल होते हैं। चलने के रूप में नियमित शारीरिक क्रिया से मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में सुधार हो सकता है और मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति में भी वृद्धि होती है। इसकी वजह से मस्तिष्क-कोशिकाओं की अपरिवर्तनीय क्षति और इसके परिणामस्वरूप ज्ञान का आकलन करना, स्मरणशक्ति एवं सीखना या कुशलताओं में गिरावट होने टाला जा सकता है। इस तरह डिमेंशिया, अल्जाइमर रोग और स्मृति सुधार की सुरक्षा हो सकती है।
१६. कैंसर के जोखिम को कम करता है:
विशिष्ट चिकित्सालयीन अध्ययनों से साबित हुआ है कि, नियमितरूप से विभिन्न प्रकार से चलने से, अनेक प्रकार के कैंसर से पीडित होने के जोखिम कम करने में सहायता मिलती है।
१७. नींद की गुणवत्ता और कार्यप्रणाली में सुधार होता है:
रोज़ाना चलने के नियमित व्यायाम से तनाव, चिंता और मनोदशा के अन्य विकारों को कम करने में सहायता होती है। तनाव, नींद न आने की समस्या का आम कारण है, जिसमें देर से नींद लगना और रात की नींद में बेचैनी भी शामिल हैं। इस प्रकार से, नियमितरूप से चलने से नींद की गुणवत्ता, गहरी नींद की मात्रा, नींद का कुल समय, नींद आने का समय और नींद की कुल कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
१८. सीने में जलन और कब्ज को कम करने में मदद करता है:
गतिहीन जीवनशैली के कारण, पेट में खाना देर से नीचे सरकता है और पेट देर से रिक्त होता है, जिससे घन पदार्थ पेट में रह जाते हैं और पेट का फूलना, पेट में बेचैनी महसूस होना, और इसके परिणामस्वरूप अम्ल स्राव (अम्लता) में वृद्धि और भोजन-नलिका के निचले हिस्से की संवरणी (स्फिंक्टर - एक वर्तुलाकार मांसपेशी जो सामान्यरूप से भोजन-नलिका में अन्न धकेलने के लिए जरुरतानुसार संकुचित एवं प्रसरित होती है) का प्रसरण होने जैसी बातें होती हैं। यह सभी प्रक्रियाएं, एकसाथ, गैस्ट्रिक ऐसिड का (पेट का अम्ल) भोजन-न्लिका में ऊपर उठना (खट्टी डकार आना) और इसके परिणामस्वरूप, अति-अम्लता, जलन आदि चीजों के लिए कारण बनते हैं। मध्यम स्वरूप के नियमित चलने का शारीरिक व्यायाम करने से अन्न पेट से आसानी से नीचे धकेला जाता है और पाचनतंत्र को गति मिलती है तथा ऊपर बताए गए परिणाम टल जाते हैं। पाचनतंत्र से खाना आसानी से गुजरे तो कब्ज की संभावना कम होती है।
हररोज़ नियमितरूप से चलने से संबंधित स्वास्थ्य लाभ
१. शरीर की अतिरिक्त चरबी और अतिरिक्त वजन को कम करता है और इससे मोटापे की रोकथाम होती है
२. खून में शक्कत का स्तर को नियंत्रित करने और टाइप-२ डायबिटीस मेलीटस का व्यवस्थापन करने में मदद करता है
३. उच्च रक्तदाब के नियंत्रण और प्रबंधन में मदद करता है
४. रक्त के कोलेस्ट्रॉल के स्तर में सुधार होता है और खून में अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल कोलेस्ट्रॉल) के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है
५. हमारे रक्त प्रवाह में सुधार होता है और हमारा हृदय स्वस्थ रखता है
६. हमारी टांगों की मांसपेशियों को मजबूत करता है, शरीर के संतुलन और समन्वय में सुधार होता है
७. हमारी हड्डियों को मजबूत करता है
८. चलने से गठिया का दर्द कम होने लगता है
९. हमारे मानसिक रवैए में सुधार आता है और निराशा से निपटने में मदद करता है
१०. हमारी स्मरणशक्ति में सुधार आता है और डिमेंशिया और अल्जाइमर्स रोग की संभावना कम करता है
११. तनाव को कम करता है
१२. हमारी प्रतिबंधक शक्ति बढ़ती है और हमें बार-बार बीमार होने से बचाता है
१३. फेफडों की कार्यक्षमता में सुधार होता है और अस्थमा जैसी प्रतिकूल श्वसन स्थिति में सुधार लाने में मदद करता है
१४. नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है
१५. कैंसर के जोखिम से बचाता है