सूरज हमारा मित्र है या दुश्मन है? इस पर लगातार विवाद चलता रहेगा। परंतु हमें समझना होगा कि सूरज की रोशनी इस पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए कितनी आवश्यक है। तो सूरज हमारा दुश्मन कैसे हो सकता है। हाँ, ज्यादा समय तक सूरज की प्रखर किरणों में रहने से चर्मरोग ज़रूर हो सकता है, वृद्धावस्था भी जल्दी आ सकती है। जब हमें पता चलेगा कि सूर्यप्रकाश हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं तो उसके कुछ घातक परिणाम हमें दुय्यम स्थान पर रखकर सोचना है। हम कुछ उपाय योजनाओं से ये घातक परिणाम कम कर सकते हैं। जब हमें पता रहेगा कि किस समय की और कितना समय सूर्यप्रकाश की रोशनी में हमें रहना है।
अब एक-एक करके सूरज की प्रकाश किरणों का हमारे शरीर पर होनेवाले फायदे देखते हैं।
१) विटामिन-डी की कमी को रोकता है -
सूर्यप्रकाश की किरणे हमारे शरीर में विटामिन-डी बनाने के लिए ज़रुरी है। विटामिन-डी हमारे शरीर की चमड़ी, त्वचा में बनता है। जब सूरज की किरणे हमारी त्वचा पर पड़ती हैं, तब हमारी त्वचा में विटामिन-डी बनता है। सूरज की किरणों से यूवीबी प्रकाश में त्वचा के संपर्क में आने पर एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती है जिसके परिणामस्वरूप विटामिन-डी का संश्लेषण सबसे कुदरती रूप में होता है।
२) मधुमेह Type-II की संभावना कम करता है -
मानव शरीर में विटामिन-डी के संश्लेषण के लिए सूर्यप्रकाश से पर्याप्त संपर्क आवश्यक है। विटामिन-डी हार्मोन और अग्न्याशय ग्लूकोज के चयापचय से इंसुलिन के उत्पादन और स्राव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारे शरीर में विटामिन-डी के इष्टतम स्तर इंसुलिन की संवेदनशीलता को बेहतर बनाने में मदद करते हैं, जो खून से ग्लूकोज की विभिन्न कोशिकाओं और ऊतकों में प्रभावी उपयोग के लिए आवश्यक है। सामान्य इंसुलिन संवेदनशीलता इष्टतम सीमाओं के भीतर रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने और टाइप-2 मधुमेह मेलीटस के जोखिम को कम करने में मदद करती है।
३) रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है -
टी-सेल एक प्रकार का श्वेत रुधिराणु (एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिका) है। यह संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब हमारी त्वचा पर्याप्त अवधि के लिए सूर्यप्रकाश के संपर्क में आती है, तो सूर्य का नीला प्रकाश स्पेक्ट्रम (शॉर्ट-वेवलेंथ समेत) इन कोशिकाओं को शरीर में अधिक प्रभावी रूप से प्रसारित करने में मदद करता है। यह उन्हें जल्दी से नए संक्रमण तक पहुंचने और कोई भी नुकसान होने से पहले इसे रोकने में सक्षम बनाता है।
४) कैंसर की जोखिम को कम करत है -
हालांकि कुछ अध्ययनों के अनुसार, यह सच है कि, सूर्यप्रकाश के बहुत अधिक संपर्क (विशेषकर पराबैंगनी विकिरण) किसी व्यक्ति को त्वचा के कैंसर के खतरे में डाल सकता है। यह संपर्क की अवधि, दिन का समय और किसी व्यक्ति की त्वचा के प्रकार पर भी निर्भर करता है।
नवीनतम खोज के अनुसार, यह साबित हो चुका है कि विटामिन-डी कुछ प्रकार के कैंसर के जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण है, जैसे:
* स्तन का कैंसर
* आँत का कैंसर
* पुरुषग्रंथी का कैंसर
* फेफड़ों का कैंसर
५) रक्तचाप को घटाता है -
इष्टतम अवधि के लिए सूर्यप्रकाश में त्वचा का संपर्क मानव शरीर में विटामिन-डी की उत्पत्ति में मदद करता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार, शरीर में इष्टतम विटामिन-डी का स्तर सामान्य रक्तचाप के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है। इस तरह से, उच्च रक्तचाप के जोखिम को कम करता है।
एक और तंत्र है जिसके ज़रिए सूर्यप्रकाश हमारे रक्तचाप के स्तर को सामान्य सीमा के भीतर रखने में मदद करता है। सनलाइट नाइट्रिक ऑक्साइड के संपर्क में आने पर, हमारी त्वचा में मौजूद एक मिश्रित रक्त परिसंचरण में स्थानांतरित हो जाता है। परिसंचरण में, यह रक्त वाहिनियों की आंतरिक मांसपेशियों को आराम देता है जिससे रक्त वाहिनी लुमेन चौड़ा हो जाता है। यह खून के प्रवाह को बढ़ाता है और रक्तचाप को कम करता है। संक्षेप में, यह उच्च रक्तचाप के जोखिम को कम करता है।
६) मोटापे का निवारण एवं चयापचयी लक्षण
विटामिन-डी की कमी हार्मोन इंसुलिन के स्राव में एक दरार के साथ जुड़ा हुआ है। इसके परिणामस्वरूप इंसुलिन प्रतिरोध का विकास होता है। इंसुलिन प्रतिरोध हमारे शरीर के भीतर अतिरिक्त वसा के संचय और मोटापे और चयापचय सिंड्रोम के विकास के मुख्य दोषियों में से एक है।
सूर्यप्रकाश की पराबैंगनी किरणों से त्वचा का संपर्क नाइट्रिक ऑक्साइड छोड़ता है। नाइट्रिक ऑक्साइड इंसुलिन प्रतिरोध की रोकथाम में मदद करता है; इस प्रकार, मोटापा और चयापचय सिंड्रोम की रोकथाम में योगदान देता है।
७) मिजाज सुधारता है -
सूर्यप्रकाश के पर्याप्त और नियमित रूप से संपर्क में आने पर, हमारा मस्तिष्क हार्मोन सेरोटोनिन की रिहाई को बढ़ाता है। सेरोटोनिन एक हार्मोन है जो मूड, शांति और ध्यान को केंद्रित करने से जुड़ा हुआ है। इस तरह, सूरज की रोशनी हमारे मूड को बढ़ाने और हमारे फोकस को बेहतर बनाने में मदद करती है।
८) निद्रा को बेहतर करता है -
दिन के दौरान अधिक रोशनी और रात में कम रोशनी स्वस्थ नींद पैटर्न के लिए महत्वपूर्ण है। दिन के समय शरीर को सूर्यप्रकाश के संपर्क में लाने के परिणामस्वरूप मेलाटोनिन (नींद उत्प्रेरण हार्मोन)का उत्पादन कम होता है, और रात में वृद्धि के साथ होने से यह शरीर की जैविक घड़ी को कैलिब्रेट करने में मदद करता है। यह हमारे सर्कैडियन लय को सही ढंग से समायोजित करता है; हम दिन में ऊर्जावान महसूस करते हैं और रात में नींद महसूस करते हैं। यह अनिद्रा के लक्षणों पर काबू पाने में मदद करता है और नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है।
९) अल्जाइमर के लक्षण सुधारता है -
अल्जाइमर रोग (एडी), दुनियाभर में भूलने की बीमारी का प्राथमिक कारण है, स्मृति और अनुभूति के प्रगतिशील नुकसान की विशेषता है।
विटामिन-डी, विभिन्न तंत्रों के माध्यम से, रक्त वाहिकाओं, तंत्रिका आवेग संचरण और कैल्शियम चयापचय के सुचारू संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन से सुरक्षा प्रदान करता है। विटामिन-डी की कमी ऊपर वर्णित कार्यों को बाधित करती है, जो यह प्रदर्शित करती है, जिससे अल्जाइमर रोग का खतरा बढ़ जाता है। सूर्यप्रकाश का नियमित और पर्याप्त संपर्क विटामिन-डी की कमी को दूर करने में मदद करता है; इसलिए, यह अल्जाइमर के लक्षणों में सुधार कर सकता है।
१०) चर्मरोग का इलाज करता है -
सूर्यप्रकाश से एक्जिमा और सोरायसिस जैसी त्वचा की कुछ उत्तेजक स्थितियों को ठीक करने में मदद मिलती है। सूर्यप्रकाश से त्वचा का संपर्क नाइट्रिक ऑक्साइड को रक्तप्रवाह में रिहा करता है। जब नाइट्रिक ऑक्साइड रक्तप्रवाह में होता है तब विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं को सक्रिय किया जाता है जिन्हें नियामक टी-कोशिकाएं (श्वेत रक्त कोशिकाओं का प्रकार) कहा जाता है। ये कोशिकाएँ जब सक्रिय हो जाती हैं, त्वचा में चल रही उत्तेजक प्रतिक्रिया को कम कर देती हैं। इस प्रकार, एक्जिमा के लक्षणों को कम करने में मदद करती हैं।
सूर्यप्रकाश के अल्ट्रा-वायलेट-बी किरणों के संपर्क में आने से सोरायसिस से होनेवाली त्वचा की कोशिकाओं की तेज वृद्धि धीमी हो सकती है। यह हल्के से मध्यम सोरायसिस वाले लोगों में उत्तेजन को कम करता है और शल्कन को कम करने में मदद कर सकता है।
११) हड्डीयों का बेहतर स्वास्थ्य -
हड्डी में कैल्शियम जमा होने के लिए विटामिन-डी का होना महत्त्वपूर्ण होता है। वह हमारी हड्डी एवं खून में कैल्शियम की मात्रा संतुलित रखता है। हमारे भोजन में जो कैल्शियम रहता है उसे आँत से खून में पहुँचाने में विटामिन-डी का योगदान होता है। विटामिन-डी के कम होने पर पेट से कैल्शियम का खून में अवशोषण कम होता है। जब विटामिन-डी की कमी ज्यादा दिनों तक रहती है तो खून में कैल्शियम का स्तर कम होता है। जब खून में कैल्शियम का स्तर कम होता है तब साधारण स्तर पर लाने के लिए हड्डीयों से कैल्शियम निकलकर खून में पहुँचता है। इस तरह खून में कैल्शियम की कमी को दूर किया जाता है। परंतु हड्डी में कैल्शियम घटकर हमारी हड्डीयाँ कमजोर होने लगती हैं। जिसे ‘ऑस्टीयोपोरोसिस’ कहते हैं और हड्डीयाँ कमजोर होकर टूटने, फ्रैक्चर की संभावना बढ़ती है। इसी कारण अगर हम नियमित एवं पर्याप्त मात्रा में सूर्यप्रकाश ग्रहण करते हैं, तो त्वचा में उचित मात्रा में विटामिन-डी तैयार होकर, कैल्शियम की कमी पूरी होती है और हमारी हड्डीयाँ मज़बूत होने में मदद होती है।
१२) अवसाद का इलाज कर सकता है -
हमारे शरीर में ‘सिरोटोनीन’ नामक रसायन तैयार होता है। जब सिरोटोनीन का स्तर कम होता है, तो हमारा मिजाज (मूड) खराब होता है, मन में फुरती न रहकर थकावट महसूस होती है, चिडचिडापन बढ़ जाता है और हमें अवसाद (डिप्रेशन) आता है। जब हम पर्याप्त मात्रा में सूर्यप्रकाश ग्रहण करते हैं तो ‘सिरोटोनीन’ का रिसाव बढ़ जाता है जिससे हमारे मिजाज (मूड) में सुधार आता है और हम भरपूर खुशी एवं फरती महसूस करते हैं।
१३) आँखों के स्वास्थ्य में सुधार -
अध्ययन में पता चला है कि बढ़ती उम्र के बच्चों में सूर्यप्रकाश हमारे आँख की लेन्स एवं दृष्टिपटल के बीच का अंतर सही रखती है जो कि योग्य दृष्टी के लिए ज़रुरी है। अगर यह अंतर कम ज्यादा होता है तो हमें देखने में, पढ़ने में तकलीफ़ होती है और चष्मा लगाने की ज़रुरत पड़ती है। जब बढ़ती उम्र में बच्चे घर के अंदर कम रोशनी में रहते हैं तो उनकी आँखों का विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता और मोटे काँच के चष्मे की ज़रुरत पड़ती है। इसी कारण हमें सूर्यप्रकाश में रहना चाहिए।
१४) मस्तिष्क की कार्यक्षमता सुधारता है -
जब हमारी त्वचा पर सूर्यप्रकाश की अतिनील किरणें पड़ती हैं तो ‘युरोकैनिक ऐसिड’ नामक रसायन का स्तर बढ़ता है। यह ‘युरोकैनिक ऐसिड’ जब मस्तिष्क की कोशिकाओं में जाता है तब मस्तिष्क की कोशिकाएँ उसे ‘ग्लुटामेट’ नामक रसायन में बदल देती हैं। जब ग्लुटामेट का स्तर बढ़ जाता है, तब मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच में संदेशवहन बढ़ जाता है। जह मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच में संदेशवहन बढ़ जाता है तो हमारी मस्तिष्क की याद करने की, ग्रहण करने की शक्ति बढ़ जाती है। इस प्रकार हमारे मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
सूर्यप्रकाश के सुरक्षित संपर्क के लिए दिशानिर्देश :
सूर्यप्रकाश हमारे शरीर के लिए बेहद जरुरी है। परंतु किसी भी चीज़ का अति ग्रहण हानी पहुँचाता है। सूर्यप्रकाश के ज्यादा संपर्क में आने से ऐलर्जी, त्वचा में जलन, त्वचा लाल होना एवं त्वचा का कैंसर भी हो सकता है।
परंतु चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हम कुछ एहतियात बरतते हुए सभी फायदे प्राप्त कर सकते हैं और हमारे शरीर का संरक्षण भी कर सकते हैं।
१. सूर्यप्रकाश से संपर्क की अवधी - हररोज १०-१५ मिनट.
२. काले लोगों की तुलना में गोरे लोगों को थोड़ा कम समय सूर्यप्रकाश में रहना है।
३. दिन का उचित समय -
*सुबह ८.०० से ११.०० तक उचित एवं फलदायी है।
*शाम को ४.३० से ६.०० तक का समय उचित रहता है।
*दोपहर १२.०० से ४.०० के बीच जब सूरज की रोशनी प्रखर रहती है तब जाने से बचना चाहिए।
४. परंतु हम कुछ एहतियात बरतकर हम दोपहर १२.०० से ४.०० बजे तक सूर्यप्रकाश में जा सकते हैं।
* अपनी त्वचा पर सनस्क्रीन लगाना
* आँखों पर काला चष्मा पहनना
* लंबी आस्तीन के शर्ट पहनना
५. पर्याप्त सूर्यप्रकाश प्राप्त करने के लिए, केवल हाथों और चेहरे का संपर्क पर्याप्त नहीं है, चेहरे के साथ-साथ दोनों हाथों और पैरों के कम से कम हिस्से का संपर्क सूर्यप्रकाश का अधिकतम लाभ पाने के लिए आवश्यक है।
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