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जीवाणु अच्छे हो सकते हैं क्या?

जब कभी हमें ज़ुकाम / खांसी या दस्त होते हैं तब अक्सर डॉक्टर कहते हैं, ’यह बैक्टेरियल इंन्फेक्शन है। और इसे ऐंटीबायोटिक्स की आवश्यकता है।

जी हां; बहुतसारे ’जीवाणु’ हमारे लिए हानिकारक होते हैं परंतु सभी जीवाणु हानिकारक होते हैं ऐसा नहीं है।

अक्सर मानवी शरीर में और इसके आसपास कुछ 'जीवाणु' होते हैं, जो हमारे लिए बहुत लाभदाई होते हैं। अर्थात, हमारे इर्दगिर्द सौजन्यशील (अच्छे) व संक्रामक (बुरे) 'जीवाणु' भी होते हैं।

अच्छे बैक्टेरिया हमारी आंत में, त्वचा पर, मुंह में और शरीर में अन्य अनेक स्थानों में होते हैं जो हमारा शरीर नियमित कार्यरत रहने के लिए आवश्यक होते हैं।

हमारी आंत में मिलनेवाले जीवाणु 'गट फ्लोरा (आंत में स्थित वनस्पति)' या 'गट माइक्रोबायोटा (किसी सूक्ष्म जीव का स्वाभाविक निवासस्थान)' कहलाते हैं।

'सेल्फ हेल्थ' विषय पर आधारित चर्चासत्र में, डॉ.अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी इन्होंने "अभाव की महामारी" इस विषय की पहचान कराई थी और इस विषय पर उन्होंने विस्तारपूर्वक बात की थी। यहां 'अभाव' शब्द ’हमारी आंत में' अच्छे बैक्टेरियों का अभाव' इस अर्थ से लिया गया है।

पुरुष या स्त्री की आंत में लगभग १००,०००,०००,०००,००० से अधिक (१०० ट्रिलियन) अच्छे बैक्टेरिया होते हैं। यह संख्या हमारे शरीर के समस्त पेशियों की संख्या से १० गुना ज्यादा है।

हमारे शरीर में लगभग ३०,००० मानवी वंशाणु होते हैं। और हमारे माइक्रोबायोटा की संख्या देखें तो उसमें लगभग ३,०००,००० वंशाणु होते हैं। इसका यह अर्थ होता है कि, हमारे पास मानवी वंशाणुयों की संख्या से १०० गुना अधिक बैक्टेरियल वंशाणु होते हैं।

जब बच्चा मां की कोख में होता है तब यह 'गट फ्लोरा' नहीं होता। जब बच्चे का जन्म होता है, तब उसे मां से यह 'गट फ्लोरा' प्राप्त होता है। इसको हम मां द्वारा बच्चे को प्राप्त 'पहला वरदान' कह सकते हैं।

मानव की बडी आंत में तीन प्रकार के जीवाणु होते हैं।

१) अच्छे बैक्टेरिया (बैक्टेराइड्स) २) बुरे बैक्टेरिया (फर्मिकूट्स) ३) निरुपद्रवी बैक्टेरिया

बैक्टेरोइड्स और फर्मिकुट्स, यह आंत में भरपूर मिलनेवाले बैक्टेरिया के दो प्रकार हैं। इन दो प्रकार के बैक्टेरिया की मात्रा में संतुलन होना आवश्यक है।

बैक्टेरोइड्स बैक्टेरिया मानवों के लिए बहुत ही उपयुक्त माने जाते हैं। और फर्मिकुट्स कुल (जाती) के बैक्टेरिया हमारे लिए बुरे माने जाते हैं।

अब यह ज्ञात हो चुका है कि, दुबले-पतले और स्वस्थ व्यक्ति का गट फ्लोरा और एक मोटे व्यक्ति का गट फ्लोरा इनमें अंतर होता है।

कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि, मोटे व्यक्ति में बैक्टेरोइड्स की अपेक्षा फर्मिकुट्स अधिक होते हैं। इससे यही सूचित होता है कि, हमें अपने गट-फ्लोरा पर ध्यान देना चाहिए।

भोजन पचाने में और अपनी प्रतिबंधक शक्ति बढ़ाने में गट फ्लोरा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और आंत की इस बैक्टेरिया का वज़न लगभग २ किलो होता है।

बड़ी आंत में अच्छे जीवाणुओं की अनुपस्थिति में ही दुनिया में अधिकतर बीमारियों का मूल कारण है।

यह गट फ्लोरा सभी इंसानों में होता है फिर भी, १/३ भाग सभी में समान होता है और शेष २/३ भाग प्रत्येक के लिए निराला होता है। यह २/३ भाग ही प्रत्येक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और यह हमें अपने आहार से ही मिलता रहता है।


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