Healthonic Healthcare - Aarogyam Sukhsampada
Aarogyam Sukhsampada - Health is the divine wealth.

स्थानबद्ध जीवनशैली के स्वास्थ्य पर होनेवाले नकारात्मक परिणाम

स्थानबद्ध जीवनशैली की परिभाषा यह हो सकती है कि, जिन कार्यों में बहुत ही कम ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि, नियमितरूप से बैठकर काम करना, आराम से बैठे रहना (जिसमें बैठना, टीवी देखना, व्यवसायिक / मनोरंजन के लिए कम्प्यूटर / साधनों का इस्तेमाल करने जैसे बर्तावों का समावेश है)। दिन का अधिकतम समय बैठी हुई स्थिति में बिताना, यह हमारे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हर तरह से बहुत हानिकारक है क्योंकि, ऐसा नहीं है कि, इसकी वजह से केवल हमारे मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं, रक्ताभिसरण दुर्बल हो सकता है, बल्कि ह्रदयरोग, कैंसर एवं मोटापे जैसी दीर्घकालीन बीमारियों का धोखा भी बढ़ जाता है और हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंच सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, विश्वभर में ६० से ८५% लोकसंख्या पर्याप्त क्रियाशीलता में शामिल नहीं होती। ’शारीरिक निष्क्रियता’ एक गंभीर वैश्विक समस्या है और उच्चरक्तचाप, तंबाकू का इस्तेमाल और खून में उच्च स्तर पर शक्कर (मधुमेह) के बाद विश्व स्तर पर मृत्यु के लिए जिम्मेदार चौथे क्रमांक का घटक है।

मानवों को बनाते समय, उन्हें शारीरिक स्तर पर निष्क्रिय रहने की योजना नहीं बनाई गई है, और शारीरिक निष्क्रियता ही विकृतियों के अथवा बहुतसारी दीर्घकालीन बीमारियों के कारण होनेवाली स्वास्थ्य विषयक परिस्थितियों का शिकार होने के जोखिम को बढाती है।

तो आईए, इसमें से हम कुछ जान लें।

१. खून में कोलेस्ट्रल की मात्रा बढ़ती है व रक्तवाहिनियों में अथेरोस्कैलैरॉटिक जख्मों का (रक्तवाहिनियों की अंदरूनी दीवार पर चर्बी की प्लाक/परत निर्माण होता है जिससे उन दीवारों को ज़ख्म होता है) निर्माण होता है।

दीर्घकालीन शारीरिक निष्क्रियता के दूरगामी परिणाम के रूप में दीर्घकालीन स्थानबद्ध (बैठे हुए) जीवनशैली हमारे शरीर में इन्सुलिन की संवेदनशीलता घटाती है। इन्सुलिन का प्रतिरोध निर्माण होता है, जिसके कारण ग्लूकोज के चयापचय में असंतुलन निर्माण होता है व खून में उच्च ग्लूकोज की मात्रा दीर्घ समय के लिए दिखाई देती है। इसकी वजह से ऑक्सीडेटिव (मुक्त ऑक्सीजन प्रजाति) तनाव निर्माण होने से दाहकता का प्रतिसाद बढ़ता है और यह कोशिकाओं के नुकसान का कारण बनता है। इन्सुलिन का प्रतिरोधी शरीर के चर्बी के चयापचय की कार्यप्रणाली भी बदल सकता है, जिसकी वजह से खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा असामान्य तरीके से बढ़ती है (डिस्लिपिडेमिया) और उसका परिणाम निम्नलिखित चीजों में होता है;

⦁ प्लाज़मा ट्राइग्लिसराइड्स की उच्च मात्रा ⦁ एचडीएल की कम मात्रा (अच्छा कोलेस्ट्रोल) ⦁ एलडीएल की बढ़ी हुई मात्रा (खराब कोलेस्ट्रोल)

यह तिकडी, एंडोथेलियम (रक्तवाहीनियों में अंदरुनी दीवार बनानेवाली परत) का ह्रास करता है व रक्तवाहीनियों में 'प्लाक '(एथरोस्क्लेरोटिक जख्म) तैयार करने में मदद करती है।

२. हृदय एवं धमनियों से जुड़ी बीमारियां (कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़स) और पक्षाघात (लकवा):

मनुष्य जितने ज्यादा समय तक बैठकर समय बिताता है, उतना ही उसके ह्रदय को इजा होने की संभावना ज्यादा होती है। दीर्घकालीन शारीरिक निष्क्रियता के परिणाम स्वरूप इन्सुलिन की संवेदनशीलता कम होती है, व शरीर में मौजूद चर्बी की चयापचय प्रणाली विकृत होती है। इससे खून में कोलेस्ट्रोल के, वह भी खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल कोलेस्ट्रॉल), की मात्रा में बढ़ोतरी होती है। अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल, हृदय को खून पहुंचानेवाली धमनियों की अंदरुनी दीवार पर प्लाक स्वरूप में तैयार होते हैं। समय के चलते इस प्लाक में कैल्शियम जमा होता है। इसकी वजह से हृदय के मांसपेशियों को खून व प्राणवायु पहुंचानेवाली धमनियों के अंदर खाली जगह कम हो जाती है। ह्रदय को इस तरह से बहुत ही कम मात्रा में खून व प्राणवायु मिलने की स्थिति में सीने में दर्द (एंजायना) हो सकता है, और यह ज्यादा समय तक चलता रहा तो इसके परिणामस्वरूप ह्रदय की मांसपेशियां मर जाती हैं तथा पर्याप्त मात्रा में खून की आपूर्ति नहीं होती। इसके कारण दिल का दौरा (मायोकार्डियल इन्फार्क्शन) पड सकता है।

यही जब हमारे मस्तिष्क के तंतुओं को खून पहुंचानेवाली धमनियों में होता है तब उसका परिणाम लकवे (इश्चेमिक स्ट्रोक) में हो सकता है।

३. उच्च रक्तचाप (हायपरटेंशन):

स्थानबद्ध जीवनशैली के कारण होनेवाली दीर्घकालीन शारीरिक निष्क्रियता की वजह से उच्च रक्तचाप होने का जोखिम बढता है। कैसे? आईए देखें।

⦁ ‌शारीरिक निष्क्रियता हमेशा शरीर की अतिरिक्त चर्बी के संचयन से जुडी होती है। यह चर्बी का संचय आम तौर पर हमारे कमर के व आसपास के अंतर्गत अवयवों के (मध्यवर्ती मोटापा) इर्दगिर्द पाया जाता है। 'मोटापा' खुद ही रक्तचाप का एक कारण होने की वजह से स्थानबद्ध जीवनशैली वाले लोगों में उच्च रक्तचाप होने की संभावना बढ जाती है। ⦁ शरीर के नियमित चयापचय के दौरान तैयार होनेवाली प्रतिक्रियाशील मुक्त ऑक्सीजन प्रजाति (फ्री रेडिकल) के कारण होनेवाले दुष्परिणाम, निष्प्रभावी करनेवाली शरीर की क्षमता को, मोटापा व बैठने की जीवनशैली अवरोध निर्माण करते हैं। इसकी वजह से ऑक्सीडेटिव (जारणकारी) तनाव बढ़ता है, व रक्तवाहिनियों के अंदरुनी दीवारों को नुकसान होने से वे सख्त हो जाती हैं और उनका लचीलापन कम हो जाता है। इसकी वजह से उनके द्वारा होनेवाले रक्तप्रवाह को प्रतिरोध निर्माण होता है व इसके परिणामस्वरूप रक्तचाप बढ़ता है।

४. अतिरिक्त वजन / मोटापा:-

निष्क्रिय जीवनशैली के कारण उत्पन्न होनेवाली शारीरिक निष्क्रियता मांसपेशियों की घटी हुई क्रियाशीलता से तथा कम ऊर्जा इस्तेमाल करने से जुडी होती है। ऐसे समय में जब अधिक ऊर्जा सेवन की जाती है (अतिरिक्त आहार सेवन किया जाता है) तब शरीर में ऊर्जा का अधिक संचय होता है। इसके कारण बाह्यवर्ती ऊतकों की संवेदना कम हो जाती है एवं इन्सुलिन संप्रेरक को कम प्रतिक्रिया देते हैं। प्रदीर्घ समय तक ऐसा ही चलता रहा तो इसकी वजह से इन्सुलिन प्रतिरोधक स्थिति (इन्सुलिन रेसिस्टंस) विकसित होता है। इससे खून में शक्कर का अनुचित चयापचय होता है और शरीर में अतिरिक्त चर्बी का संचय होता है। विशेषकर इसका पेट के इर्दगिर्द एवं लीवर जैसे अंतर्गत अवयवों के अंदर तथा आसपास संचय होता है। ऐसी अतिरिक्त चर्बी जमा होने के कारण मोटापा होता है और इंन्सुलिन का प्रतिरोध अधिक चिंताजनक हो जाता है। इस तरह यह दुष्टचक्र चलता ही रहता है। जब किसी व्यक्ति में मोटापा विकसित हो जाता है तब उस व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक परिणाम होता है क्योंकि, इसकी वजह से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, आदि जैसी अन्य स्वास्थ्य विषयक समस्याएं शुरू हो जाती हैं।

५. टाइप -२ डायबिटीज मेलिटस (मधुमेह):-

बैठी हुई जीवनशैली वाले लोगों में जरुरत अनुसार शारीरिक हलचल न होने के कारण और अधिक मात्रा में कैलरीज के सेवन के परिणामस्वरूप शरीर में अतिरिक्त चर्बीयुक्त ऊतक जमा होने लगती है। यह चर्बी आम तौर पर कमर के आसपास के हिस्से में एवं वहां के अवयवों के आसपास संचित होती है, जिसकी वजह से मोटापा होता है। चर्बी के अतिसंचयन के कारण हानिकारक रसायनों का स्त्राव होकर, शरीर में दाह व सूजन उत्पन्न होती है। इसके कारण इंसुलिन (खून में मौजूद शक्कर के सक्रिय चयापचय के लिए जिम्मेदार संप्रेरक) का प्रभाव कम हो जाता है। इंसुलिन, खून में शक्कर के प्रभावी चयापचय को व उसका इस्तेमाल शरीर की विभिन्न कोशिकाओं और ऊतियों में करने में नाकाम होता है। उदा. स्नायु (इसी को 'इंसुलिन का प्रतिरोध' कहते हैं)। जब हमारा शरीर इंसुलिन के प्रतिरोध पर मात करने में नाकाम होता है, तब खून में शक्कर की मात्रा बढ़ जाती है और टाईप-2 डायबिटीज मेलिटस होता है।

६. कैंसर :-

हमने पहले भी देखा है किे, शारीरिक निष्क्रियता मधुमेह, मोटापा और ह्रदयरोग जैसी विकृतियों से संबंधित है। यह समस्या अधिक भीषण हो सकती है क्योंकि, इससे कई प्रकार के कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है।

शारीरिक निष्क्रियता ही 'इंसुलिन का प्रतिरोध' (यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें 'इंसुलिन' संप्रेरक खून में शुगर की मात्रा घटाने के लिए प्रभावी होती है) होने से जुडी होती है। इंसुलिन का प्रतिरोध शरीर में दाह एवं सूजन का जोखिम बढा सकता है। अध्ययन के अनुसार ऐसा पाया गया है कि, शरीर में अतिरिक्त दाह उत्पन्न होने की वजह से अनेक प्रकार के कैंसर होने की संभावना बढ सकती है। जैसे कि:

⦁ प्रोस्टेट (मूत्राशय के निचले हिस्से की ग्रंथि - अष्ठिला ग्रंथि) का कैंसर ⦁ स्तनों का कैंसर ⦁ कोलोरेक्टल कैंसर (आंत का) ⦁ फेफड़ों का कैंसर ⦁ अंडाशय का कैंसर ⦁ एंडोमेट्रियल (गर्भाशय के स्तर का) कैंसर

७. मांसपेशियों की कार्यक्षमता एवं ताकत कम हो जाती है:-

दीर्घकालीन शारीरिक निष्क्रियता शरीर के मांसपेशियों के चयापचय पर असर कर सकती है जिसकी वजह से मांसपेशियों में मौजूद प्रोटीन्स का बढ़ते क्रम में विभाजन होता है तथा नए प्रोटीन्स कम मात्रा बनते हैं। इसके कारण मांसपेशियों का द्रव्यमान व कार्यक्षमता कम हो जाते हैं। मांसपेशियों की ताकत कार्यक्षमता के परिणाम स्वरूप कम हो जाती है, जिसकी वजह से व्यक्ति बार-बार गिरता है और आघात होने की संभावना निर्माण होती है।

८. हड्डियां कमज़ोर होना (अस्थिभंगुरता) एवं हड्डियां टूटना (अस्थिभंग):

प्रौढों में हड्डियों के चयापचय से संबंधित, प्रमुखता से, दो प्रकार की कोशिकाएं होती हैं। प्रथम प्रकार की कोशिकाएं (ऑस्टियोक्लास्ट) नियमित अपक्षरण एवं टूटनेवाली नुकसानग्रस्त व वृद्ध हो चुकी हड्डियों की ऊतियों को निकालने से संबंधित होती हैं। तो, दूसरी तरह की कोशिकाएं (ऑस्टियोब्लास्ट) नई एवं कार्यक्षमरूप से सक्रिय हड्डियों की ऊतियों का निर्माण से संबंधित होती हैं। इन दोनों प्रकार की कोशिकाओं की सुसंगत क्रिया हमारी हड्डियां मजबूत और स्वस्थ रखती है।

शारीरिक निष्क्रियता, इन कोशिकाओं की बढती क्रिया से संबद्ध है जो हड्डियों का द्रव्यमान कम करती है (ऑस्टियोक्लास्टस) और हड्डियों के बढ़ने के लिए उत्तेजन करनेवाली कोशिकाओं (ऑस्टियोब्लास्ट्स) का उत्पादन कम करती है। प्रौढ हुई हड्डी के चयापचय में इस असंतुलन के कारण, हड्डियों की ऊत्ती व द्रव्यमान क्रमशः कम होते हैं। धीरे-धीरे हड्डियां विरल एवं भंगुर हो जाती हैं। जैसे जैसे उम्र बढती है वैसे वैसे यह समस्याएं बढ़ती जाती हैं और अस्थिभंग व जख्म होने की संभावना बढ़ती जाती है।

९. शारीरिक विकलांगता :-

घटती मांसपेशियों का द्रव्यमान व कार्यक्षमता और कमजोर हड्डियां, बार-बार गिरने की और अस्थिभंग होने के जोखिम बढ़ सकते हैं। इसकी वजह से, कोई भी शारीरिक हलचल के बिना, बैठी जीवनशैली का अवलंब करनेवाले व्यक्तियों में शारीरिक दुर्बलता/विकलांगता/अपाहिज स्थिति आ सकती है।

१०. उदासीनता /स्मृति नाश/ अल्जाइमर रोग:-

आजकल के चिकित्सा के अध्ययन में यह भी पाया गया है कि, दीर्घ समय तक शारीरिक निष्क्रियता और स्थानबद्ध जीवनशैली मज्जारज्जूओं की समस्या से और मानसिक समस्याओं से, जैसे कि, उदासीनता/स्मृति नाश या अल्जाइमर रोग, आदि से संबंधित है।

११. रोगप्रतिकारक शक्ति की कार्यप्रणाली का बिगड़ा हुआ कार्य:-

हमने पहले ही देखा है कि, स्थानबद्ध जीवनशैली के कारण होनेवाली शारीरिक निष्क्रियता मुक्त रेणुओं की तरह (मुक्त ऑक्सीजन प्रजाति) विषैले रसायनों से जुड़ी हुई है, जो रोगप्रतिकारक यंत्रणा की कार्यप्रणाली बिगाड़ सकती है। इसके कारण, या तो हमारी रोगप्रतिकारक शक्ति अति कार्यशील बनकर स्वयं प्रतिरोधक दाहक रोग (ऑटोइम्म्यून डिसीज) उत्पन्न कर सकते हैं या कम सक्रिय होकर रोगजनक परिस्थितियों के विरोध में लड़ने में असमर्थ बन सकते हैं, जिसकी वजह से बार-बार रोग संक्रमण होने का धोखा रहता है।

इस तरह, कार्यक्षम जीवनशैली में जीना हमारे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्थानबद्ध जीवनशैली छोड़ना और दिन में क्रियाशीलता बढ़ाना यही उपरोक्त वर्णित प्रतिकूल स्वास्थ्य समस्या से बचने के लिए आवश्यक है।

स्थानबद्ध जीवनशैली के स्वास्थ्य पर होनेवाले नकारात्मक परिणाम

⦁ उच्च रक्तचाप ⦁ कम उम्र में सीने में दर्द या दिल के दौरे का अधिक जोखिम ⦁ कम उम्र में डायबेटिस मेलिटस होने का जोखिम ⦁ वज़न बढना और मोटापा ⦁ प्रोस्टेट का कैंसर, स्तनों का कैंसर, बडी आंत का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, अंडाशय का कैंसर, एंडोमेट्रियल कैंसर का अधिक जोखिम ⦁ उदासीनता ⦁ शरीर में जलन, दर्द और सूजन ⦁ प्रतिरक्षा प्रणाली की शिथिलता ⦁ कमज़ोर हड्डियां और फ्रैक्चर का बडा हुआ जोखिम ⦁ मांसपेशियों की द्रव्यमानता और ताकत में कमी ⦁ शारीरिक निष्क्रियता